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हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत में भी अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाली नयी पीढ़ी में अज्ञानता तथा भ्रम की स्थिति हो रही है कि चर्चा राम की है या रामा की, क्योंकि spelling दोनो की Rama लिखी जा रही है।कृष्ण की चर्चा है या कृष्णा यानी द्रोपदी की (दोनो की स्पेलिंग Krishna लिखी जा रही है। इसी प्रकार वेद, ओमकार वैदिक शब्द हैं, इनमे परिवर्तन करने का अधिकार हमें नहीं है। अशोक शब्द पुर्लिंग है। अशोका Ashoka स्त्रीलिंग हो जाएगा, जबकि चर्चा सम्राट अशोक की है चाणक्य ऐतिहासिक चरित्र चाणक्य पुर्लिंग है न कि स्त्रिलिंग। चर्चा भरत की है या भारत की है, स्पेलिंग दोनो की एक है Bharat मैंने आयुर्वेद पर अंग्रेज़ी में एक पुस्तक देखी जिसमें वात, कफ, पित्त के लिए vata, kafa, pitta लिखा था तथा अमेरिका में जन्मी भारतीय लड़की वाता, काफ़ा, पित्ता ही पढ़ रही थी।
इसी भ्रम को दूर करने हेतु यह स्पष्ट करना अभीष्ट होगा कि चूँकि व्यंजन ध्वनि बिना स्वर ध्वनि के बोलना असम्भव है जैसे क में क+अ यह दो ध्वनिया सुनाई देती हैं। इसी अ के कारण अहिंदी भाषी रोमन में लिखने पर हर व्यजन के बाद a लगा देते हैं। अंग्रेज़ी में a लगाने पर अ तथा आ भी बोलते हैं तो a आ की मात्रा भी बन जाता है तथा उच्चारण होता है आ।
अतः यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि व्यंजनांत शब्द में अ मात्रा नहीं है अतः बोला व लिखा नहीं जाता, तो व्यंजनांत शब्दों में अंत में English में a लिखने की आवश्यकता नहीं। आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ किसी व्यंजन से जुड़ने पर मात्रा बन कर बोले व लिखे भी जाते हैं पर अ नहीं जैसे, क का कि की कु कू के कै को कौ। इसमें क में कोई मात्रा नहीं है तो अ अलग से नहीं लिखा जाता, तब रोमन यानी इंगलिश में a लगाने की आवश्यकता नहीं।
इसके समाधान हेतु यहाँ कुछ सुझाव हैं जिसकी शुरुआत हम हिंदीभाषी ही कर सकते हैं –
1. English लिखते समय व्यंजनांत शब्दों के अंत में a लिखना बंद करें। राम को Raam लिखें, कृष्ण को Krishn, वेद Ved, गीत Geet धर्म dharm सीता Seetaa ,Geetaa यानी हिन्दी की बड़ी ई के लिये ee का प्रयोग करें। मीत Meet मीता Meetaa
2. हिंदी शब्दों में आ की मात्रा होने पर aa का प्रयोग करें, यथा रमा को Ramaa, राम को Raam , भरत Bharat, किंतु भारत Bhaarat, chaanakya, Omkaar, Naarad, Hanumaan, शिला Shilaa, शीला Sheela, सीता Seetaa, पार्वती Paarvati, गीता Geetaa, त्रेता Tretaa, उर्वी Urvi, Ulka, Urmila, ऊर्जा Oorja, ऊँटी Oonti ऊष्मा ooshmaa आदि।

यकारांत शब्दों में भी इसी प्रकार लिखने की आवश्यकता हैं, यथा पुर्लिंग शब्दभव्य bhavya, श्रव्य shravya, कर्तव्य kartavya, श्रेय Shreya, ज्ञेय geya, योग्य yogya, ध्येय dhyeya, प्रिय priya, न्याय nyaaya, विज्ञ vigya, प्रायः praayah, सोनल Sonal,

स्त्रिलिंग शब्द – भव्या bhavyaa, श्रव्या shravyaa, कर्तव्या kartavyaa, श्रेया shreyaa, गेया geyaa, प्रिया priyaa, सुविज्ञा suvigyaa, सोनाली Sonaali
समझ सकते हैं कि अ कोई मात्रा नहीं है जबकि aa आ की मात्रा है। अंग्रेज़ी में य तथा या के लिए एक ही स्पेलिंग ya ही है। हम या के लिए yaa लिखना शुरू करते हैं।
3. प्रकाशकों को इस सुधार, परिवर्तन हेतु यह लेख भेज कर सहयोग प्राप्त करें।
यद्यपि इसमें समय लगेगा जो हमें स्वीकार्य होगा। हमारे लिखते-लिखते व प्रकाशकों के सहयोग से यह अभ्यास में आ जाएगा। यह परिवर्तन का युग है, हिंदी विश्व के बहुत से देशों में पढ़ाई जा रही है, शनैः-शनैः विश्व भाषा का रूप ले रही है। निकट भविष्य में विश्व पटल पर हमारे देश का नाम भी भारत यानी Bhaarat होने जा रहा है, अतःहिंदी भाषियों से यह परिवर्तन अपेक्षित है।

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक संघ (अमेरिका शाखा)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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