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कर्मों का बहीखाता

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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हम सब जानते हैं
जैसा कर्म करेंगे,
वैसा ही फल पायेंगे
गीता का यही ज्ञान,
है जीवन का विज्ञान।
कौरव पांडव का
उदाहरण सामने है
रावण विभीषण,
सुग्रीव बाली के बारे में
हम सब जानते हैं
कंस का भी ध्यान है
या भूल गए।
सबका बहीखाता
चित्रगुप्त जी ने सहेजा,
किसी को राजा
तो किसी को प्रजा
तो किसी रंक बनाकर भेजा
अमीर गरीब का
खेल भी मानव का नहीं
कर्मानुसार उसके
बहीखातों का खेल है।
यह और बात है कि हमें
अपने पूर्व जन्म या
जन्मों का ज्ञान नहीं होता,
इसीलिए अपने कर्मों का
भी हमें पता नहीं होता।
और हम सब इस
जन्म के साथ ही
पूर्वजन्मों के कर्मों
का फल पाते हैं।
क्योंकि हमारे कर्मों का बही
खाता निरंतर भरता रहता है,
उसी के अनुसार कर्म
फल का निर्धारण होता है
और हमें अच्छा बुरा
कर्म फल मिलता है।
वर्तमान जीवन में ही
नहीं मृत्यु के बाद भी
चित्रगुप्त जी के
बहीखाते में दर्ज
हमारे कर्मों के अनुसार ही
कर्म फल का निर्धारण
होता रहता है,
सत्य यह भी है कि
हमारा एक एक कर्म
चित्रगुप्त जी के बहीखाते में
दर्ज़ होने से कभी छूटता भी नहीं,
इसीलिए तो इसे कहा जाता है
कर्मों का बहीखाता।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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