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रामकली

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।
हेंपपंप से भरने गागर, उठके पहट चली।।

मैके में तो खुद नल चल के, घर में आता था।
ग्वाला घंटी सात बजे नित, बजा जगाता था।।
बनी ब्याहता गाँव आ गई, लाड़ो प्रेम पली।।
मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।।

लीप रही अब चौका चौरा, थाप रही कंडे।
अधरों पर मुस्काने भीतर, दुखड़ों के हंडे।।
तपी कर्म के चूल्हे पर चढ़, गुड़ की मधुर डली।।
मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।।

आदर के छींके पर सारी, ख्वाहिश टाँग रखी।
बैरी दिन फटकार लगाये, रातें मगर सखी।।
तन से मन से औरों के हित, बस ताउम्र जली।।
मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।।

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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