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घूंघट के पट खोल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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मैं कुछ अति मित्रताप्रेमी किस्म का बंदा हूँ, जल्दी से फेसबुक पर अपने ५ के का टारगेट रीच करना चाहता हूँ, ताकि मेरा पेज भी पब्लिक फिगर बन जाए। सच पूछो तो कुछ सेलिब्रिटी जैसी फीलिंग आती है, शायद मेरी ये भावना फेसबुक के खोजी कुत्ते ने सूंघ ली है। फेसबुक की कृत्रिम बुद्धीमता भी आजकल लोगों की फीलिंग के सूंघ-सूंघ कर पहचान रहा है। फीलिंग के साथ खिलवाड़ करने से पहले सूंघना पड़ता है कि फीलिंग क्या है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए। पहले तो मुझे टैग करवाने में बड़ा मज़ा आता था, तो रोज़ मेरे टैगवीर दोस्त मुझे दस-दस तस्वीरों के साथ टैग कर देते थे। पूरी टाइम लाइन इन टैग वीरों के सुहागरात, वर्षगाँठ, सत्य, असत्य विचार, देवी-देवताओं राक्षसों गंदार्भ किन्नरों के फोटो से भरी रहती थी। फिर कहीं से मुझे पता लग गया कि इन टैगियों से पीछा छुड़ाने के लिए फेसबुक की सेटिंग में जाकर कुछ उल्टे-सीधे बटन दबाये जा सकते हैं, तो टैगियों से पीछा छूटा। अब फेसबुक ने मेरी दूसरी फीलिंग को अपनी अतिग्राही संवेदनशील नाक से सूंघ कर पता लगा लिया कि मुझे मित्रता सूची के खाली टब को भरना है। वह अधजल टब थोड़ा ज्यादा छलकता है ना, शायद इसलिए धड़ाधड़ फ्रेंड रिक्वेस्ट आने लगी। हमें ऐसा लगने लगा कि जैसे हमारा वैवाहिक विज्ञापन निकल गया हो और धड़ाधड़ प्रपोजल आ रहे हैं। हम जैसे ही प्रपोजल पर क्लिक करके लड़की दिखाई की रस्म करते तो पता लगा कि लड़की तो घूंघट में है। लॉक्ड प्रोफाइल की दीवार में कैद ….
भाई और भावी मित्र लोग हमारे मित्रता गठजोड़ की रस्म को निभाने के लिए बेचैन। भाई अब लड़की दिखाई की रस्म घूंघट में कैसे हो सकती हैं। एक बार शादी हो जाए तो फिर भी ये घूंघट उठाने की रस्म करें। फेसबुक के हेल्प सेक्शन में जाकर हमने मित्रता बंधन से पहले इस घूंघट को उठाने की कोई गाइडलाइन ढूँढनी चाहिए थी तो वो भी नदारद मिली। सच पूछो तो बिल्कुल पुरानी हिंदी फिल्मों का सीन याद आ गया, जब घूंघट उठाई और सुहागरात का सीन भी दो फूलों को टकराकर बता दिया जाता था। यहाँ भी फेसबुकियों ने जो हमसे दोस्ती को ललायित है अपने कवर पिक और डीपी में कोई गेंदे का फूल या किसी देवी, गणेश जी की प्रतिमा, मॉर्निंग कोट्स लगा रखे हैं। अब ये हमारी “बूझो तो जाने” प्रतिभा की परीक्षा ले रहे हैं।
लग तो ऐसा रहा था जैसे हमारी जासूसी हो रही हो, कहीं हमारी श्रीमती जी ने ही तो ये प्रोफाइल नहीं बना रखे हों। हम इस हनी ट्रैप जैसे मामले में फंस जाएँ और बुढ़ापा खराब हो जाए। कई बार ऐसा हुआ है, किसी सुंदर कन्या के हसीन मुखड़े की आमंत्रित निगाहों में कैद होकर फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट भी कर ली तो उसका सीधे उछल कर हमरे इनबॉक्स में दनादन प्रेमालाप शुरू हो जाता। कई तो हम से ज्यादा हमारी मित्रता सूची में महिला मित्रों की लिस्ट को खंगाल कर चुन-चुन का रिक्वेस्ट भेजने में व्यस्त हो जाते। हमारे ’स्वागत है आपका’ कि स्तुति का भी कोई जवाब नहीं। हमने भी अपनी मित्रता सूची छुपा के रखी है। ऊपर पहरा डाल रखा है। जमाने की नजर का भरोसा नहीं जी, सोशल मीडिया पर भी भूखे भेड़िये घूम रहे हैं। और कुछ नहीं तो कब आपकी टाइमलाइन पर अपनी हवस का रायता फैला दें क्या भरोसा..ऊपर से फेसबुक की सर्विलांस टीम का डंडा…कौन सा शब्द इसे अश्लील लग जाए, क्या भरोसा, ब्लॉक ही कर दे,,, ।
कुल मिलाकर इन घूंघट में बैठी दुल्हनियों से निवेदन करूँगा कि घूंघट का जमाना गया, पर्दा उठाओ, पर्दे में दिलवर का दीदार नहीं होता, बिना दीदार किये इस दिल को चैन नहीं आता है। मैदाने जंग में आना है तो सामने आओ, और अगर कोई कमजोरी है जिसे छुपाना चाहते हैं तो शर्तिया इलाजियों के किसी इश्तहार का पता मैं दे दूँगा। रोज मेरे अखबार से दो चार टपकते ही रहते हैं, बरामदे में पड़े हुए हैं। लो जी खाकसार की एक तुकबंदी भी ….
प्रोफाइल लॉक रखने वाले कुछ फ़ेसबुकियों के लिये एक संदेश
प्यार के पियक्कड़ो
ठरकी निठल्ले फक्कड़ो
शर्म नहीं आती, फ़ेसबुक पर
रखें प्रोफाइल लॉक
जैसे दुल्हन घूँघट में शर्माती।
अरे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने से
पहले सनम दीदार करो,
दिखा के थोबड़ा अपना
नज़रें दो चार करो।।

परिचय :-  डॉ. मुकेश ‘असीमित’
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही आपकी पहली पुस्तक नरेंद्र मोदी का निर्माण : चायवाला से चौकीदार तक प्रकाशित होने जा रही है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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