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गाफ़िल रामधनी

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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रोप दिए हैं रम्य विपिन में, जब से नागफनी।
डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।।

कदम-कदम पर खड़े हुए हैं, पहरे आँखों के।
उलाहनों ने जला दिये हैं, सब कस पाँखों के।।
नैतिकता की सभी नीतियाँ, लगती खून सनी।।
डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।।

समता के नारे सुन फूले, मन के गुब्बारे।
पहुँच नहीं पाये पर घर तक, जय के हरकारे।।
सुख की तलवारें दुखड़ों पर, रहती तनी-तनी।।
डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।।

जनसेवा की पोशाकों में, कामी तन भक्षी।
तान रहे हैं तम के तंबू, दिन के आरक्षी।।
शहर मतों का लूट ले गई, शातिर आगजनी।।
डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।।

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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