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मनमर्जी घातक होती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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अच्छी बात तुम्हें समझाते, कान खुलकर सुनना।
मनमर्जी से नहीं रास्ता, तुम जीवन में चुनना।
रावण भी मनमर्जी करके, सीता को हर लाया।
मारा गया राम के हाथों, कुल का नाश कराया।

कौरव दल ने मनमर्जी से, चीर हरण कर डाला।
शेषसमय अपने जीवनका, किया भयंकर काला।
करें अवज्ञा मात- पिता की, तिरष्कार करते हैं।
कालकूट अपने हाथों से, जीवन में भरते हैं।

जानबूझकर जो मनमर्जी, जीवन में करते हैं।
पाप- ताप, संताप हृदय में, वे अपने भरते हैं।
जिसने की मनमर्जी उसने,मर्मान्तक दुख पाया।
मनमर्जी कर सारे जीवन, उसने कष्ट उठाया।

मनमर्जी कर, कैकेयी ने, भेजे रघुवर वन में।
पश्चाताप रहा अंतस में, दुखी रही जीवन में।
मनमर्जी तुम कभी न करना, हर पल पछताओगे।
सजा भयंकर मनमर्जी की, निश्चय ही पाओगे।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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