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प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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पुरुष होने का दर्द क्या है कोई कैसे जाने
उसको भी दर्द होता है कैसे कोई पहचाने
कितनी सफाई से दर्द सीने में छुपा लेटा है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
मुस्कान लिए परिवार के सदा खटता है
हर मुश्किल और संघर्ष में सदा डटता है
जिम्मेदारी वश खुद को खुवार कर लेटा है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
दायित्व बोध पुरुष को जीने कहाँ देता है
बिस्तर में पडा पर नींद उसे कहाँ आता है
मन में अगले दिन का हिसाब कर लेता है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
भार धारित किया है सब रिश्ते-नातो का
तनिक फ़िक्र नहीं है खुद कि जब्बतों का
अपने सुख भी रिश्तो में कुर्बान कर देता है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
कभी पिता, कभी पति तो कभी बना भाई
माता पिता कि सेवा तो कभी करे पहुनाई
असहय वेदना को होंठो पर छुपा लेता है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
पर उसके सीने में दिल है कोई कैसे जाने
उसको जीने का हक है कोई तो अब जाने
सभी उसे जिम्मेदारी का पाठ पढ़ा देता है
अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
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