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पितरों की शान्ति

अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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पिंड और प्राण का संयोग कोई विशेष लक्ष्य लिए होता है। वह पूरा होते ही वियोग निश्चित होता है। तात्पर्य यह हैं कि शरीर और आत्मा ये दोनों ही अलग है। आत्मा अविनाशी, चेतन ज्योति बिन्दु, शान्त स्वरूप होती है। शरीर हाड, मांस, रक्त से बनी भगवान की अनुपम कृति है। जिस अवचेतन में चेतनता आत्मा के संयोग से आती है।
आत्मा में ८४, जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा जमा होता है। वह उसे जन्म मृत्यु के चक्र में पूरा करती है।

इस प्रकार चार युग सतयुग त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग में आत्मा अपने घर ब्रह्म तत्व से स्थुल लोक पृथ्वी पर समय अनुसार आकर अपना पार्ट इस शरीर के माध्यम से सृष्टि रुपी रंगमंच पर अदा करती है। ठीक पांच हजार साल के सृष्टि चक्र में उसे चक्र लगाना होता है।

अतः देह से ही सारे संबंध होते हैं। आत्मा ने देह छोड़ा वैसे ही सारे संबंध दूसरे जन्म में नये हो जाते हैं। लेकिन हर जन्म के माता-पिता, अन्य रिश्तों से उसका लगाव रहता है। सूक्ष्म में आत्मिक प्रेम कहो या मोह के धागों से जुड़े रहते हैं। शुद्ध प्रेम, आसक्ति के आडम्बर में नही फंसता। दैहिक ममता और आसक्ति निराशा के अंधकार में डुबाती है।

शरीर में आत्मा की प्रवेशता से ही जन्म सिद्ध होता है। पश्चात वह मुक्त होती है।देह में रहते देही का कर्तव्य एक दूजे से होना निश्चित है।यह संबंध जितना पवित्रता से हम निभाते हैं, हमें सुख की प्राप्ति होती है। विकारों के वश निभाने पर दुःख भोगना पड़ता है। इस प्रकार सुख दुःख का कर्म भोग आत्मा से संलग्न है।
अतः हमारे पूर्वज हमसे किसी न किसी रूप से जुड़े रहते हैं। हमें निरन्तर शुभकामना, शुभ भावना देते रहना चाहिए।

सोलह दिन का पितृपक्ष इसी उद्देश्य से शास्त्रों में निश्चित किया है। जिसमें हम पूर्वजों के सुख शांति की कामना कर पिंडदान करते हैं। कोई आत्मा की रूचि के अनुसार दान धर्म में भी विश्वास रखता है। जिससे आत्मा को शान्ति मिलती है। श्रद्धांजलि देना, शान्ति की कामना करना, शुद्ध आचार विचार के साथ सद्गति की इच्छा रखना, प्रेम से इस जन्म में सहयोगी रहे पितरों को याद करना। क्योंकि जीवन में उस आत्मा का संयोग होगा वैसा सुख शोक होता है वो जल्दी समाप्त नहीं होता। जब हम स्वार्थ वश एक दूसरे से व्यवहार रखते हैं तो उसे भुगतना पड़ता है।भावनात्मक क्षतिपूर्ति में समय लगता है। लेकिन इस परिस्थिति से लड़ने की क्षमता हम सुखद स्मृति से और पितरों के उत्कृष्ट कार्यो को याद कर तथा वैसे ही कर्मों का अनुकरण कर प्राप्त कर सकते हैं। जिससे पूर्वजों की छत्रछाया, आशीर्वाद, शुभ भावना बनी रहती है।
ध्यान रहे आत्मा भाई-भाई हैं। शाश्वत है। परमात्मा की संतान हैं।इस नशे में रहकर प्रति पल उनके आशीर्वाद लिए जा सकते हैं। यह अद्भुत ज्ञान स्वयं भगवान ईश्वरीय विश्वविद्यालय में परम शिक्षक के रुप में बांट रहे हैं।

परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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