अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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है घनघोर गमों की, निशिका
राह नहीं दिखती है।
आज कहानी इस जीवन की,
निशिका ही लिखती है।
निशिका देख न तुम डर जाना,
आगे चलते जाना।
बीच राह में कभी न रुकना,
गर मंजिल हो पाना।
निशा-दिवस सुख-दुख के जैसे,
आते हैं जाते हैं।
गहराई में जाने वाले,
ही मोती पाते हैं।
आधी निशिका में ही जन्मे,
कारागार कन्हाई।
कान्हा पहुँच गए गोकुल में,
बनी यशोदा माई।
बीतेगी घनघोर यामिनी,
सुखद भोर आएगी।
देख अरुणिमा बाल सूर्य की,
निशिका भी जाएगी।
तमस उजाला दो पहलू हैं,
इससे क्या घबराना।
सब संघर्ष करें जीवन में,
पार दुखों से पाना।
स्याह पक्ष निशिका का देखा,
धवल पक्ष अब जानें।
चलना पड़ता हमें रात में,
चाँद सितारे पानें।
सदा स्वप्न आते निशिका में,
नींद निशा में आती।
जीवन की सारी दुख पीड़ा,
निशिका दूर भगाती।
प्यारी नींद दिलाती निशिका,
तन को ऊर्जित करती।
गम को दूर हटाती निशिका,
खुशी हृदय में भरती।
निशिका मिलन कराती दिल का,
सृजन बीज बोती है।
दो दिल एक जान कर देती,
यह काला मोती है।
शोभा पाता चाँद रात में,
धवल चाँदनी आती।
होती मुदित कुमुदिनी निशि में,
पंकजनी सकुचाती।
चाँद सितारों का जमघट भी,
निशिका में होता है।
मिलते हैं निशिका में प्रेमी,
सारा जग सोता है।
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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