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जामुन का पेड़

डॉ. कांता मीना
जयपुर (राजस्थान)
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उज्ज्वल अपनी मां से बोला, मां मैं कल शहर चला जाऊंगा तो फिर एक महिने बाद ही आना होगा। इसलिए में अपने दोस्त केशव से मिलकर आता हूं, वो भी परसों अपनी नौकरी पर चला जायगा। फिर ना जाने कब मिलना होगा। अभी आता हूं। हां, चला तो जा पर शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना, तेरी बुआ आयेगी तुझसे मिलने, हां ठीक है। उज्ज्वल अभी घर से निकला ही था कि बरसात होने लगी एक बार तो सोचा वापस घर जाकर छाता ले आता हूं। तभी विद्यालय की ओर से आती हुई घंटी की आवाज उज्ज्वल के कानों में पड़ी, उसने सोचा क्यों ना स्कूल की दीवार के पास खड़ा हो जाता हूं। जिससे बरसात में भीगने से बच जाऊंगा। बच्चों के शोरगुल की आवाज ने उसके मन में भी स्कूल के दिनों की याद ताजा कर दी थी। बरसात कुछ देर रुक गई। पर पेड़ो के पत्तो पर ठहरा पानी अभी भी धीरे-धीरे करके टपक रहा था। उज्ज्वल अब चल पड़ा था। केशव के घर के दरवाजे के पास पहुंचा ही था। कि केशव की बड़ी बहन की लड़की भावना सामने से जामुन खाते हुए आ रही थी। उज्ज्वल को देखकर थोड़ी शरमाई फिर बोली उज्ज्वल भईया लो जामुन खा लो। आपकी स्कूल से ही तोड़ कर लाई हूं। उज्ज्वल ने उसके हाथ से थोडे से जामुन लिए और खाते-खाते अन्दर कमरे में चला गया। केशव अपने कपड़ों को समेट रहा था। उज्ज्वल को देखते ही बोला उज्ज्वल ये ले कमीज मैं तेरे लिए लाया था। उज्ज्वल ने कहा ठीक वैसी ही है जैसे तूने अभी पहन रखी है। क्या बात है आज अपने बचपन के दोस्त पर बड़ा प्रेम आ रहा है। प्रेम नही आ रहा वो तु हर बार मुझे पूछता है ना मेरे लिए क्या लाया, मेरे लिए क्या लाया। इसलिए सोचा तुझे भी कुछ उपहार दे दूँ। बस ऐसे ही अरे, तु तो बड़ा दिल वाला निकला। ले पहले जामुन खा ले। जामुन कहा से लाया।अरे, भावना ने तुझे नहीं दिए। अच्छा यार भावना को भी इस साल किसी अच्छे से महाविद्यालय में दाखिला दिलवाना है। उज्ज्वल, समय कितनी जल्दी पंख लगाकर उड़ जाता है। पता ही नहीं चलता है। हां यार देखो ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात है। ये जामुन भी भावना स्कूल से तोड़ कर लाई है। उज्ज्वल बोला स्कूल से हां वो पेड़ जो कल तक हमारी जिज्ञासा का विषय बना रहता था। तुम्हे याद है ना वो जामुन के पेड़ का किस्सा, हां यार कैसे याद नही होगा। चल वही चलते है। हां चल। स्कूल की छुट्टी होने की घंटी बज रही थी। उज्ज्वल और केशव स्कूल के गेट के बाहर खड़े थे। बच्चे उछल कूद करते हुए जामुन के पेड़ से जामुन तोड़ रहे थे। कुछ बच्चे पेड़ पर चढ़े हुए थे और कुछ बच्चे जमीन पर बिखरे जामुनों को पानी से धो-धो कर खा रहें थे और एक दुसरे को अपनी जीभ दिखा रहे थे। ये देखो मेरी जीभ जामुनी हो गई। बच्चों को देखकर उज्ज्वल बोला तुझे पता है। ये जामुन का पेड़ कौन लाया था। हां, घनश्याम गुरुजी लाएं थे। उस साल हम दोनों दूसरी कक्षा में थे। गुरुजी ने कहा बच्चों मैं तुम्हें एक पेड़ का जीवन चक्र कैसे चलता है। ये समझाने के लिए जामुन का पेड़ लाया हूं। सभी बच्चे चाहते थे कि जामुन का पेड़ स्कूल परिसर में लगे पर गुरुजी ने जामुन का पेड़ स्कूल की दीवार के बाहर लगाया। हां और मैं हर दूसरे महीने गुरुजी से कहता गुरुजी इस पेड़ पर जामुन कब आएंगे। हम इस पेड़ से तोड़ कर जामुन कब खायेगे। गुरुजी ने कहा सब्र करो बच्चों सब्र का फल मीठा होता है। हां पर हम सबको तो जामुनी फल नजर आ रहा था। रोज स्कूल में आते ही स्कूल के बाहर लगे जामुन के पेड़ को पानी देते थे।
केशव तेरे बार-बार सवाल करने पर गुरुजी ने तुझे ही इसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। गर्मियों की छुट्टीयों में इसमें पानी देने की जिम्मेदारी तुम्हारी थी। हां, और मैं जामुन के लालच में बड़ी ईमानदारी से इसमें पानी देता रहता और इन्तजार करता रहता कि कब इसमें जामुन आयेगे। इस पेड़ के साथ-साथ हम भी बड़े होते रहे। हां पूरे दस साल बाद इसमें जामुन आए थे। हां मुझे याद है। जिस साल इसमें जामुन आएं उसके एक साल पहले ही गुरुजी अपनी स्कूल से सेवानिवृत्त हो चुके थे। और हम भी स्कूल शिक्षा खत्म करके अपने आगे के मार्ग की और बढ़ चुके थे, तुम्हे याद है। घनश्याम गुरुजी के कहने पर मैने वनस्पति विज्ञान लिया था और तूने जामून के पेड़ की निगरानी करने की वजह से वनस्पति विज्ञान लिया था। जामुन के पौधे में पानी देते-देते ना जाने कब मुझे पेड़ पौधो के बारे में जानने की जिज्ञासा हो गई। तुम्हें याद है। गुरुजी से हमने कहा था गुरुजी आप तो जा रहे हो पर गुरुजी जामुन के पेड़ में जामुन नही आएं। गुरुजी मुस्कराए और बोले कुछ पौधे देर से फल देते है। देखना जब भी तुम जामुन खाओगे। मुझे जरूर याद करोगे। ये बात तो सही है। शायद इसलिए गुरुजी ने स्कूल के बाहर इस पेड़ को लगाया था। कि स्कूल से जा चुके विद्यार्थी भी जामुन खा सके। यार उज्ज्वल गुरुजी ने तो कभी इन पेड़ो पर लगे फल खाएं ही नहीं। क्यो ना हम ये मीठे-मीठे जामुन के फल गुरूजी के पास लेकर चलते है। वैसे भी मैं कल शहर जा रहा हूं। ठीक है ,चल अभी जामुन तोड़ लेते हैं। रुक जरा, मैं घर से जाकर कपड़े का थैला ले आता हूं। भर के लेकर चलेंगे। गुरुजी हमें देखकर बड़े ही प्रसन्न होंगे। हां, तेरी ये बात तो सोलह आना सच है। दोनों दोस्त बड़े प्रसन्न थे। अगली सुबह पहली बस से उज्ज्वल और केशव गुरूजी के घर पहुंच गए। गुरुजी के घर दरवाजे के बाहर बैठी अम्मा से उज्ज्वल ने पूछा अम्मा, गुरुजी घर पर है क्या? अम्मा बोली हां बेटा अंदर बैठे हैं। अखबार पढ़ रहे हैं। केशव बोला अम्मा यह लो आपके लिए मीठे जामुन, अम्मा बोली तुम्हें कैसे पता चला तुम्हारे गुरुजी को डॉक्टर ने जामुन खाने की सलाह दी है। उज्ज्वल बोला वैसे ही अम्मा जैसे बचपन में गुरुजी को पता चल जाता था कि हमने स्कूल का गृह कार्य नहीं किया। और दोनों दोस्त मुस्कुराने लगे। कमरे के अंदर जाते ही गुरुजी का आशीर्वाद लिया। गुरुजी ने कहा तुम दोनों को आज मेरी याद कैसे आई। बस गुरुजी आपको देखने का दिल किया। तब तक अम्मा अंदर आ चुकी थी। गुरुजी से बोली देखो बच्चे तुम्हारे लिए थैला भर के जामुन लाएं है। गुरुजी मुस्कुराने लगे और बोले अच्छा आखिर जामुन के पेड़ पर जामुन आ ही गए। उज्ज्वल बोला, हां गुरुजी आखिर जामुन के पेड़ पर जामुन आ ही गए। गुरुजी उज्ज्वल की बात पर जोर से ठहाका लगाकर हंस रहे थे। केशव बोला गुरुजी हमें पता चल गया कि आपने स्कूल के बाहर जामुन का पेड़ क्यों लगाया था। जिससे सभी बच्चे इसका लाभ ले सके। अम्मा बोली लो थोड़े जामुन तुम दोनों भी खा लो। गुरुजी की आंखों में संतुष्टि की चमक थी। उज्ज्वल और केशव गुरुजी के सानिध्य में बैठकर जामुन खा रहे थे।

परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार)
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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