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बचपन की वो यादें

अभिषेक मिश्रा
चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश)
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एक समय था जब मैं छोटा था,
उस चाँद को कहता मामा था।

पता नहीं कब सुबह होता था,
और रात को कहाँ ठिकाना था।

स्कूल न जाने के लाख बहाने,
पर मम्मी की डॉट से जाता था।

स्कूल से आने में थक जाते थे,
पर शाम को खेलने जाना था।

होम वर्क करने का मन नहीं करता था,
पर मैडम से पीटने के डर से करता था।

बारिश में खेलता कागज की नाव से,
तब लगता हर मौसम ही सुहाना था।

चाहे पड़ती हों ठंडी या गर्मी
क्रिकेट खेलने जाता था,
नहीं होता चोट का डर
इसलिए मस्ती में रहता था।

एक दुसरे से पैसा लेकर
गेंद खरीद कर आता था,
गेंद गुम हो जाने पर
मायूस होकर घर आता था।

रात को हमे तब नींद नहीं आने पर,
मम्मी की लोरी एक मात्र सहारा था।

वो झूठी सब मनगढ़ंत कहानी,
मम्मी हमको तब सुनाती थी।

कहती थी जल्दी सो जा तू वरना,
भुतू आकर तुमको उठा ले जाएगा।

उस नाच का अलग मजा था
जो नहाते वक्त मैं करता था,
मम्मी के हाथों से बिन पीटे
आँगन से बाहर न आता था।

पढ़ते वक्त जब भूख लगती थी,
माँ के हाथों से खाता था
जब आँखों में नींद आती तो
किताबों पर ही सो जाता था।

बचपन की प्यारी वो बातें,
जब याद कभी आ जाती है
कैसे कमर से पैंट सरकता था,
जब डोरी खुल जाता था।

मेढ़क को थे ईट से मारते,
कान दर्द तो बहाना था,
कागज के थे प्लेन बनाते,
फूक मार जो उड़ाना था।

वो बचपन अच्छा था जब टाई
बेल्ट पहन स्कूल को जाता था,
आते वक्त कॉलर खड़ा कर,
हाथों से टाई हवा में जब उड़ाता था।

होता क्या नजराना था वो,
जब लगता हर घर अपना था,
एक दुसरे की आंखें बन्द कर,
छिपन-छिपाई खेलता था।

पापा के थे हम राज दुलारे,
माँ के आंख का तारा था,
जब मम्मी से डॉट पड़ती तो,
दादी के पास जाता था।

नहीं होता था हाथों में ५ जी,
वो २ जी का जमाना था,
पब्जी का तो पता नहीं,
चोर पुलिस मैं खेलता था।

तब रील्स नहीं दिखता था,
वो ऍफ़एम् रेडियो का जमाना था,
चाहत होता था चांद पाने कि,
तारा तो बस एक बहाना था।

नहीं पता अब कब मिलेगा करने को,
जो बचपन में मस्ती मै करता था,
कोई मुझे बता दें कि कितने किमत पर,
मेरा बचपन मुझको लौटा देगा।

परिचय :- अभिषेक मिश्रा
निवासी : ग्राम-चकिया, तहसील- बैरिया, जिला-बलिया (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा : एमकॉम
लेखन विद्या : कविता, मौलिक रचना एवं मोटिवेशनल कोट्स।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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