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गुनगुनी धूप है शिक्षक

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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ईश्वर का होता सु-रूप है शिक्षक,
सद्गुणों भरा मृदु कूप है शिक्षक।
अनसुलझी-सी सर्द फिजाओं में,
जैसे कि-गुनगुनी धूप है शिक्षक।।

अज्ञानता भरे खाली अ से लेकर,
‘ज्ञ’ तक का देता है निश्छल ज्ञान।
नही जगत में सदगुरु से बढ़कर,
गोविन्द हो या, फिर हो इंसान।।

कहलाती प्रथम गुरु निज जननी,
लेती परख पलभर में सब कुछ।
पिता है सदगुरु धरती पर दूसरा,
जाती, देख पीड़ा भरी पावक भुझ।।

तपकरक़े स्वंय सद्कर्म वेदी में,
स्वर्ण को कुंदन बनाये सद्गुरु जी।
लगाए चांद के तिलक शिष्य निज,
पंखों में परवाज जगाये सद्गुरु जी।।

अंधकार भरे छल-छ्द्ममी जग में,
सद्गुरु ही हैं एक महा दिव्य-दीप।
चुन चुनकर बूंद स्वाति नक्षत्र की,
करता सृजित वह अनमोल सीप।।

जिसे मिला सानिध्य सद्गुरु का,
बन गया वह “नर” नारायण यहां।
हुआ धन्य जीवनध्येय “गोविमी”का
जब उठे कदम मेरे हो कर्मपरायण।।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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