अभिषेक मिश्रा
चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश)
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जय जय जय शिक्षा के दाता।
कृपा करो आशीष प्रदाता।।
तुम सागर हों गुरु ज्ञान के।
सबको देते हों ज्ञान अपार।।
बुद्धि विवेक जो भी चाहें।
गुरु सेवा में ध्यान लगाए।।
गुरु मंत्र जो कोई भी जपता।
जीवन में सफल सदा रहता।।
अनपढ़ को भी ज्ञान देकर।
तुम बना देते हो यू विद्वान।।
तुम पर हैं हम सबको गुमान।
तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।।
अनपढ़ को जो विद्वान बना दे।
धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।।
भक्ति भाव का दीपक जलाते।
नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।।
अंधकार को तुम दूर भगाते।
ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।।
सही गलत का पहचान सिखाते।
शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।।
हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार।
समय-समय पर करते हों प्रचार।।
बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते।
चंद्रगुप्त को राज दिलाते।।
महामूर्ख कालीदास जैसे को।
अनपढ़ से महाविद्वान बनाते।।
हे शिक्षक तुम हों योगी।
मत बनना वेतन भोगी।।
गुरु बिना कोई ज्ञान नहीं।
न जीवन में कोई पहचान।।
गुरु से मिले ज्ञान कि छाया।
जो जीवन को नई दिशा देता।।
गुरु से जो भी दूरी बनाएं।
जीवन भर वो पछताएं।।
संकट में जो हंसना सिखाए।
जो धैर्यता का पाठ पढ़ाए।।
जिसे देख खुद सर झुक जाए।
सच्चा शिक्षक वही कहलाएं।।
गुरु होता हैं ज्ञान का सागर।
जो सबको बाटे ज्ञान बराबर।।
निर्धन हों या हों धनवान।
गुरु देता है ज्ञान समान।।
गुरु का ज्ञान हैं जग में अनमोल।
इसलिए मिलता हैं ऊंचा स्थान।।
गुरु ज्ञान बिन इस धरती पर इंसान।
हर कोई हैं बेजान, अधूरा हैं इंसान।।
कलम भी तब नतमस्तक हुआ।
जब गुरु के गुण गान लिखाए।।
लिखते लिखते थक गया।
अभिषेक गुरू गुण गान।।
बोलों सब गुरु महाराज कि जय।
बोलों सब गुरु चालीसा कि जय।।
निवासी : ग्राम-चकिया, तहसील- बैरिया, जिला-बलिया (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा : एमकॉम
लेखन विद्या : कविता, मौलिक रचना एवं मोटिवेशनल कोट्स।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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