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ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है)

संकलनकर्ता – भीष्म कुकरेती

ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं।

ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है –
लोक गायन व नृत्य –
आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति से भी स्वांग करते थे। बादी हर बारह वर्ष में लांग खेलते थे।
वाद्य बादन – बांसुरी बादन आम था, अलगोजा भी बजाया करते थे। बादी हारमोनियम भी बजाते थे। जागरी थाली व डमरू बादन करते थे। हंत्या घड्यळ के जागरी ठंठोली नाम चतुर था।
ढोल वादक – ढौंर के कुशला व सुतला। मुशकबाज बागों के कलाकार।
सिद्धि दर्शन – बीसवीं सदी मध्य तक चोर पकड़ने, खोई वस्तु या जानवर खोजने हेतु मंत्र बल पर पुरुषोत्तम कंडवाल घड़ा रिटाते थे व घड़े के ऊपर मकर राशि के रामचरण कंडवाल बैठते थे।
रणेथ (ठंठोली का भाग) डळया गुरु कई तंत्र मंत्र के विशेषज्ञ थे।
समस्या पूर्ति या पहेलियाँ ज्ञान – तकरीबन हर नागरिक पहेली, कहावतों, का ज्ञान रखता था।
कोशों का ज्ञान – आयुर्वेदिक वैद्य होने के लिए वैदकी सीखना सामन्य चलन था। संस्कृत का ज्ञान पहले घर में दिया जाता था।
सर्यूळ – बडोला व कंडवाल, कुकरेती सर्यूळ (सामहिक भोजन बनाना) का कार्य करते थे।
पेय पदार्थ (कच्ची शराब) – भवा नंद कंडवाल प्रसिद्ध थे।
बढ़ईगिरी – शिल्पकार, बाड्यों के व ठंठोली के थे
बांस के बर्तन – बाड्यों के चिरुड़ व गोबिंदराम
पत्थर खान – ठंठोली में मलण गाँव में छज्जे के दास, उरख्यळ (ओखली), सिल्ल बट्ट हेतु पत्थर की खाने थीं व पत्थर निकालने व कटान के कलाकारों में रीठू, बेळमू, पन्ना लाल व उनके पुरखे प्रसिद्ध थे।
लोहार गिरी – स्थानीय शिल्पकार में रीठू, बेळमू, पन्ना लाल
सुनार – जसपुर व पाली (मल्ला ढांगू) पर निर्भर
टमटागिरी (ताम्बा, पीतल, कैसे के बर्तन निर्माण आदि) – पूर्णतया जसपुर पर निर्भर
घराट – बाड्यों के शिल्पकारों पर निर्भर
कूड़ चिणायी (मकान निर्मणाकरता ओड) – सौड़ व जसपुर के ओडों पर निर्भर
भ्यूंळ की टोकरी, दबल आदि स्थानीय लोग स्वयं निर्मित करते थे
माला आदि फूलों से बनाते थे व बच्चों की सुरक्षा माला जिसमे कौड़ियां, बघनखे, चांदी/ताम्बे के सिक्के, अजवायन थैली भरके बनाई जातीं थीं व कंडवाल पंडित विशेज्ञ होते थे।
मुख पर रंग व उबटन की प्रथा विवाह अवसर पर थी। दूल्हा-दुल्हन को विष्णु व लक्ष्मी रूप दिया जा था।
गहने पहनने हेतु शरीरांग छेदन होता था व अधिकतर लोहारों की सहायता ली जाती थी। बचपन में लड़कियां तोर या वनस्पति के गहने बनाकर पहनते थे।

ज्योतिष व कर्मकांड में पुरुषोत्तम कंडवाल, भैरव दत्त कंडवाल, दामोदर कंडवाल, दिनेश कंडवाल, राधाकृष्ण कंडवाल, किसन दत्त कंडवाल आदि वैद्य व भेषज प्रसिद्ध थे। भैरव दत्त कंडवाल व्यास वृति हेतु प्रसिद्ध थे। कर्मकांडी ब्राह्मण तकली कातकर जनेऊ निर्माण करते थे। जन्म पत्रियों पर विभिन्न चित्रकारी भी करते थे, पूजन समय कई कला प्रदर्शन होते थे – जैसे चौकल में में गणेश थरपण।

वैद्यों में जय दत्त कंडवाल, हरि दत्त, पुरोषत्तम कंडवाल व किसन दत्त कंडवाल नामी वैद्य थे। लकड़ी की नक्कासीदार आलिशान तिबारियां भी ठंठोली में थी व मलूकराम बडोला (नंदराम नारायण दत्त बडोला के दादा), राजाराम बडोला, बास्बा नंद कंडवाल, जय दत्त कंडवाल, पुरुषोत्तम कंडवाल, रामकिसन कंडवाल आदि सात तिबारियां थीं। इनमे देवताओं को छोड़ पशु, पक्षियों व अन्य नक्कासी थी।
मकानों की लिपाई लाल या काली मिट्टी के साथ गोबर से होती थीं। व कमेड़ा भी प्रयोग होता था
लोक खेलों में – गारि /गिट्टे पाछ गारी, – गारि क्वाठा म डळण घिरपातयी, इच्चि दुच्ची, लुक्का छिपी – घुंड फोड़ – काणो बणिक पकड़न, पकड़ा पकड़, इकटंगड्या – छौंपा दौड़, डुडड़ कूद (याने रस्सी कूद) खेल, रस्सा कस्सी, कुद्दी मरण /फाळ मरण, झुळा खिलण, बा कटण (तैराकी), डाळम चढ़ण, पत्थर घुरैक चुलाण, घुंघरा-घुराण, – बाग़-बकरी खेल, गुच्छी खिलण कांचक या पथरक गोटी खिलण, इलाड़ु का घट्ट रिंगाण, रड़न, खाडु लड़ान . तीर चलाण – मल्ल युद्ध व मुक्केबाजी, तास खिलण, चौपड़ खेल, खुट गिंदी, हिंगोड़, हथ गिंदी, गिल्ली डंडा खेल, सिमनटाई /पिट्ठूपोड़, कबड्डी, खो-खो, माछ मरण – अयेड़ी खिलण, ब्यौ मा -हल्दी लगाण, कंगण तुड़न, रिंगण, ग्यूं या अन्य फसल का बलड़ों म छजजा से, तमाखु बूंद दैं नचण, गिगड़ुं लड़ै मुख्य खेल थे कई खेल आज भी विद्यमान हैं। (सूचना आभार ठंठोली के चंडी प्रसाद बडोला ) 

Copyright @Bhishma Kukreti
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परिचय :-  भीष्म कुकरेती
जन्म : उत्तराखंड के एक गाँव में १९५२
शिक्षा : एम्एससी (महाराष्ट्र)
निवासी : मुम्बई
व्यवसायिक वृति : कई ड्यूरेबल संस्थाओं में विपणन विभाग
सम्प्रति : गढ़वाली में सर्वाधिक व्यंग्य रचयिता व व्यंग्य चित्र रचयिता, हिंदी में कई लेख व एक पुस्तक प्रकाशित, अंग्रेजी में कई लेख व चार पुस्तकें प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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