प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं।
दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।।
हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में।
आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।।
आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में।
दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।।
प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में।
नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।।
भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में।
दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।।
पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में।
सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।।
बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में।
दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।।
डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ।
नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।।
है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में।
दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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