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एक थी स्त्री

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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दुःखद घटनाओं की शिकार बहनों बेटियों को समर्पित …

तड़पती रही अकेली
सुनसान राहों में,
सिसकियाँ अनसुनी कर
लोग गुजरते रहे !
धरती माँ की गोद में
खुन से लतफत छिपने की
जगह ढूंढती हुई रही!!
जली थी जीवन भर
बेशरम नजरों की अग्नि में,
डरती आई थी सदैव गलियों और
सड़कों पर चलने में,
बेआबरू होती रही
बार-बार हर बार !!
पैदा हुई तो
हर तरफ शोर हुआ
ये तो लक्ष्मी आई है,
ये दुर्गा का रूप है,
ये बरकत लेकर आई है !
कुछ दुआएं देते
कुछ माता-पिता
पर बोझ बताते !!
हुनर से नहीं कपड़ों से
व्याख्या की गई
उसके चरित्र की,
उसके उन्नतिशील विचारो से
चरित्रहीनता का
प्रमाणपत्र दिया गया,
वो तो देवी का रूप थी ना …???
किसी की बेटी
किसी की पत्नि
किसी की बहन,
मित्र भी थी !
किसी के घर का
चिराग थी!
किसी का अभिमान,
किसी की पूरी दुनिया थी !!
स्वच्छंदता से जीने की
आजादी कहीं मिली,
तो कहीं छीन ली गई,
दोष उसका क्या था वो
कभी समझ ही नहीं पाई !!
उसकी गलती कोई
उसको समझाये
शिक्षित होने की गलती,
ऊंचे महकमों में काम
करने की गलती की ,
समाज में बराबरी का
दर्जा महसूस करने की गलती
सबके सुख दुःख में
शामिल होने की गलती
पाँव पसारने की गलती ,
अपने सपनों को ऊंची
उड़ान देने की गलती,
ख्वाहिशें पूरी करने की गलती
आजाद वतन में
आजादी से जीने की गलती,
इतनी गलतियां करके
आजाद रहने की उम्मीद
ही कैसे करने लगी??
स्वाधीन देश में
स्वाधीनता के लिए
छटपटाती वो
“एक स्त्री थी” !!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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