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अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
अब तो नीरस लगा दीखने, मुझको यह संसार।
आना जाना नियम यहाँ का,फिर भी महल बनाते।
कोई यहाँ ठहर न पाता, सब हैं आते जाते।
मेरा घर इस पर बना है, साजन हैं उस पार।
ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
बीच भँवर में डोले नैया, मन हिचकोले खाता।
दूर-दूर तक दिखे न कोई, समझ नहीं कुछ आता।
बन जा मेरे प्यारे कान्हा, तू ही खेवनहार।
ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
माया दिखती बिल्कुल सच्ची, सबको उलझाती है।
जीवन की है कठिन पहेली, समझ नहीं आती है।
माया तो आनी जानी है, झूठा यह संसार।
ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
वशीभूत माया के होकर, ठोकर ही खाता है।
खाली हाथ आगमन तेरा, खाली ही जाता है।
सबके पालन हार राम हैं, जीवन के आधार।
ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
माटी का पुतला आखिर में, माटी में मिल जाता।
मिलता जीव, ब्रह्म में जाकर, लौट नहीं फिर आता।
कोई समझ न पाया अब तक, माया मय संसार।
ले चल मन के पंछी मुझको, तू सागर के पार।
परिचय :– अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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