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अनाथों की मोक्षदात्री

माधवी तारे
लंदन
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बंद कमरे की खिड़की की मद्धम रोशनी में बैठकर मैं उस ठंडी शाम को ऊर्जा और प्रेरणा से ओतप्रोत थी। विश्वमांगल्य नाम की एक पत्रिका मेरे हाथ में थी और उसमें मैं एक अतिविलक्षण महिला डॉ. भाग्यश्री के बारे में पढ़ रही थी जिसने एक अलग ही तरीके से अपने जीवन को सार्थक किया है।
वैसे तो स्त्री शक्ति ने अपनी ताकत का और सफलता का परचम आज चूल्हे-चौके का दायरे सहित आसमान तक फहराया है। तभी तो घर ही क्या सारी दुनिया कहती है कि तुलसी बिना आंगन सूना वैसे स्त्री बिना घर सूना। आज तक एक ही क्षेत्र स्त्री के लिये कोमलांगी, भावनाशील, समझकर अछूता रखा गया था वह स्थान है श्मशान। वैसे आज वहां भी स्त्रियां जाती हैं।
लेकिन इंदौर की इस प्रतिभाशाली महिला ने तो अपना कार्यक्षेत्र ऐसी जगह को बनाया है जहां सामान्य लोग जाने का विचार भी नहीं करते. इस प्रेरणास्पद नायिका का विवाह एक चतुर्थ श्रेणी कार्यकर्ता के हुआ और इस दंपत्ति का तीन साल का छोटा बेटा भी है। इतना ही नहीं उसने डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की.ऐसी एक पढ़ी लिखी महिला श्मशान को अपना कर्मक्षेत्र बनाए, ये बहुत आश्चर्यजनक है लेकिन गरीबी के कारण ससुराल औऱ माता-पिता दोनों की पक्षों ने इस पर आपत्ति नहीं उठाई।
दुनिया का एक दस्तूर है कि जिंदगी खेलती भी उसी खिलाड़ी के साथ है जो बेहतरीन होता है। यह स्त्री अनाथ और निराश्रित शवों का दाह करने में कभी-कभी पिंडदान करने में भी अपना योगदान देती है। पढ़ते-पढ़ते लगा कि दर्द सब के एक से होते हैं लेकिन हौसले अलग-अलग। उस स्त्री को न तो श्मशान का भय सताता है और न ही उसे किसी तरह के बुरे सपने सताते हैं। ऐसी अनाथों की मोक्षदात्रि को शत शत नमन …

परिचय :- माधवी तारे
वर्तमान निवास : लंदन
मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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