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आत्मा परमात्मा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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आत्मा परमात्मा का अंश है,
स्वीकार करले।
और उसके मार्गदर्शन में ही,
तू सत्कर्म करले।
आत्मा परमात्मा …

आत्मा कर्मो का तेरे,
पूरा लेखा है बनाती।
इसीसे दुष्कर्म के पहले,
सदा तुझको जगाती।
इसलिए आत्मा के हर संदेश,
को स्वीकार करले।
आत्मा परमात्मा …

कमल कीचड़ में है उगता,
पर सदा ही स्वक्ष रहता।
सांप चंदन में लिपटते,
पर नहीं वो विषाक्त होता।
तू सुरक्षाकवच अपनी,
आत्मा का ही पहनले।
आत्मा परमात्मा …

श्रेष्ठतम योनि में भेजा और,
रहता साथ हरपल।
कार्य सब ईश्वर के मिटकर,
होगा तब हर कार्य निश्चल।
हांथ जग के कार्य करते,
शवांसो को सुमिरन से भर ले।
आत्मा परमात्मा …

आत्मा हरपल तेरे कर्मो,
की शाक्षी बन रही है।
और निज अंशी से जुड़ने,
के भी अवसर दे रही है।
नहीं जा तू कंदरा में,
बस प्रभु की शरण लेले।
आत्मा परमात्मा …

परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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