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उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ,
कब तक जियोगी बनके बेचारी।
क्यों लज्जित पग-पग स्वाभिमान,
क्यों बढ़ाते नही चीर गिरधारी।।

तुम स्वयं सृष्टि की हो सृजक,
तुमसे ही कण-कण स्पंदित है।
सीने में धधके ज्वालामुखी तेरे
तुझसे ही नभ-भू आनन्दित है।।

समझो न स्वंय को अब अबला,
तुम तो पालक हो महाप्रलय की।
तुम ही हो सुख-समृद्धि की दाता,
तुम ही हो वर शाश्वत अभय की।।

संभव नही मानव जीवन यह,
बिन वामांगी के इस संसार में ।
करो नही मर्दन मान स्वंय का,
छल-छदमी कामी व्यवहार में।।

अब फिर न दुष्ट दुशासन कोई,
केश खींचने का दुःसाहस करे।
अब गली-गली दुर्योधन घूमते,
सोच-समझकर ही व्यवहार करें।।

अनुसुइया-सा तेरा जीवन पावन,
फिर क्यों लगे तन पर लिवास भारी।
तुम तो हो स्वंय प्रतिमूर्ति सौंदर्य की,
तुमसे ही सुरभित यह धरा प्यारी।।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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