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गहरा गड़ा खूंटा

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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जेंडर समानता की बात बहुत हो रही है, समान काम का वेतन अलग होना बहुत शर्म की बात इसलिए है कि मुर्मू जी राष्ट्रपति हो, सीतारामन सबसे बड़े लोकतंत्र में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था का बजेट पेश करे, हलवा भी बने, तीखे प्रश्नों के जवाब भी आत्मविश्वास से देवे। पायलेट हो, वायुसेना में विशेष भूमिका में हो, सेना के ट्रूप का पुरुषों की टुकड़ी का गणतंत्र दिवस पर नेतृत्व करते देख सारी नारियां उछलने लगे, तब ऊंचे ओहदों डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर तक मे अंतर हो तो कुछ सोचने वाली बात है। कल एक बिल्डिंग का सिक्योरिटी ठेकेदार से बात हुईं कहने लगा, मैडम इस बिल्डिंग में चालीस प्रतिशत महिला कर्मचारी है, सुरक्षा की दृष्टि से छत आदि पर ताला लगवाना बहुत जरूती है, एक हादसा होने पर मेरी एजेंसी खतरे में पड़ जाएगी। माना एक की कमाई से घर नही चलता है। आज नर्सिंग घोटाले से कितनी ट्रेनी का भविष्य अंधकारमय हो गया है, साथ ही पेपर लीक से कितना संकट खड़ा होता है। कुछ समाज तो नौकरीपेशा दुल्हन ही ढूंढते है, सरकारी हो तो बड़ा दहेज समझा जाता है, सोने का अंडा आ गया, घर दवा पेंशन की सुबिधा है। निजी स्कूल में अधिक पे साइन कर कम वेतन देते ही है, आयकर बचाने को, कितनी मज़बूर होती हॉगी वह महिला, कितना आत्म सम्मान चोटिल होता है, इस व्यवहार से।फिर एक बड़े सीईओ साहब से बात हुई, मल्टीनेशनल में भी पचीस प्रतिशत कम है। खेत मजूर में तो है ही सोचो वह, लगभग अनपढ़ ही है पर ऊंची डिग्री लेकर भी ये हिकारत सहे तो कितनी शर्मनाक बात है, एक दिनेशनन्दिनी डालमिया जी का उपन्यास है +कितने जनम वैदेही+, में उन्होंने इसी बात को उठाया है कि सीता के कितने जन्म है कितने अवतार है, भक्ति से ओतप्रोत लोग राम को भगवान मान लीला पुरुष कह के छोड़ सकते है। पर ये पीढ़ी सीता की अग्नि परीक्षा को ललकारती है, देवदत्त पटनायक जवाब दिए जा रहे, पर ये दुनिया क्यों कब कैसे की है। तो भी अपनी बहन पत्नी बेटी पे अत्याचार होने पर अगर मौन है, मासिक धर्म के पहले दिन चाण्डालिनी आदि-आदि बातों का विरोध नही करती दिखती तो पितृसत्तात्मकता अभी भी गहरी जड़े जमा कर बैठी है। इक्कीसवीं सदी में बकरी की रस्सी लंबी तो हुई पर खूंटा तो गहरा ही गड़ा हुआ है।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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