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जम के बरसो बदरा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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जल की पहली बूँद ने, गाया मंगल गीत।
कृषकों की तो बन गई, वर्षा अब मनमीत।।

जमकर बरसो आज तुम, ऐ बदरा मनमीत।
धरती के दिल को अभी, लो तुम प्रियवर जीत।।

बचपन की बारिश सुखद, बेहद तब उल्लास।
खुशबू मिट्टी की भली, सोंधेपन का वास।।।

पहली बारिश जब हुई, हरियाली का दौर।
आसमान के मेघ पर, किया सभी ने गौर।।

खुशी दे रही है वृहद, हमको तो बरसात।
मिट्टी को तो मिल गई, एक नवल सौगात।।

बचपन की यादें घिरीं, मन हो गया अतीत।
नहीं आज परिवेश वह, नहीं आज वे मीत।।

पानी से जीवन मिला, बूँदें हैं वरदान।
करता है यह नीर तो, खेतों का सम्मान।।

नदी भरी,तालाब भी, मौसम है अनुकूल।
दूर हो गए आज तो, गर्मी के सब शूल।।

बारिश से ही गति मिले, पीने को है नीर।
जल की बूँदों ने हरी, आज सभी की पीर।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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