Friday, November 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

हां मैंने खुद को

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
********************

घर-घर रहे,
हर सदस्य प्रखर रहे,
यही सोच सब
कुछ संभाला है,
परिवार के लक्ष्यों
को पाने खातिर
मैंने खुद को
घर से निकाला है,
झिड़कने काट खाने
को आतुर रिश्ते,
हो चुके एक दूजे
के लिए फरिश्ते,
अब कौन
समझाये इनको
इनके खातिर ही
जान संकट में डाला है,
हां मैंने खुद को
घर से निकाला है

जी है हिस्से मेरे
नफरतों का अंबार,
गलत न होकर भी
करना पड़ता है स्वीकार,
ऐसा नहीं है कि मैं
दूध का धुला हूं,
जैसा भी हूं सबके
सामने खुला हूं,
इनके लिए हर
दुख दर्द भुला हूं,
किस-किस को
बताऊं कि
कब कब फांसी के फंदे
पर मुस्कुरा कर झूला हूं,
रहा होऊंगा कभी
उजले तन वाला
जिम्मेदारियों ने
थूथन कर डाला काला है,
हां मैंने खुद को
घर से निकाला है

त्राहिमाम हिस्से मेरे,
उनके हिस्से जिंगालाला है,
हां मैंने खुद को
घर से निकाला है।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष प YouTubeर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *