अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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(छत्तीसगढ़ी रचना)
सुन ना दाई ओ, सुन गा मोर ददा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
पेन, कापी हा, मोर संगी-साथी ए।
पुस्तक मनी हा, जिनगी के थाती ए।।
पढ़-लिख के चलहूं गियान के रद्दा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
गुरु जी हा सुनाही, बब्बर शेर के कहानी।
पढ़बो हमन कबिता, मछली जल के रानी।।
हिन्दी हवय मोर महतारी के भाखा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
जोड़-घटाव बर खुलही गणित के पिटारा।
गुणा-भाग बर गिनबो पहाड़ा गिनतारा।।
आकृति नापबो ता आहय खूब मजा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
जम्मों जिनिस के नाव ला अंग्रेजी म बोलबो।
सतरंगी इंद्रधनुष के निसैनी बनाके चढ़बो।।
सीखबो पोयम जॉनी-जॉनी यस पापा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
खेलबो खेलगढ़िया के हमन खेल।
कभू कबड्डी, खो-खो, कभू रेलमरेल।।
नाचा अऊ गाना म मोरो होही चर्चा।
महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।।
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।
प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, अटल स्मृति सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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