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ओ मेघ अब तो बरस जा

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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सूखी धरा तरसे हरियाली
जाती आबिया लाएगी संदेशा
माटी की गंध का होगा कब अहसास हमें
गर्म पत्थरों की दिल कब होंगे ठंडे
घनघोर घटाओं को देख
नाचते मोर के पग भी अब थक चुके
मेंढक को हो रहा टर्राने का भ्रम
ओ मेघ अब तो बरस जा।

छतरियां ,बरसाती
भूली गांव -शहर का रास्ता
उन्होंने घरों में जैसे रख लिया हो व्रत
नदियाँ झरनो के हो गये कंठ सूखे
कलकल के वे गीत भूले
नेह में भर गया अब तो पानी
ओ मेघ अब तो बरस जा।

हले खेत हो जैसे अनशन पर
बादलों की गड़गड़ाहट
बिजलियों की चमक से
डर जाता था कभी प्रेयसी का दिल
ठंडी हवाओं से उठ जाता था घुंघट
मुस्कुराते चेहरे होने लगे अब मायूस
ओ मेघ अब तो बरस जा।

परिचयसंजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा : आय टी आय
निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश)
व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “संकल्प शिरोमणि राष्ट्रीय सम्मान २०२३” से सम्मानित, भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता : शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर (म.प्र.)
काव्य पाठ : काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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