प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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योग भगाता रोग है, काया हो आदित्य।
स्वास्थ्य रहे हरदम खरा, मिले ताज़गी नित्य।।
योग कला है, ज्ञान है, ऋषियों का संदेश।
तन-मन की हर पीर को, करे दूर, हर क्लेश।।
योग साधना मानकर, पाते हम बल-वेग।
गति-मति में हो श्रेष्ठता, मिले खुशी का नेग।।
दीर्घ आयु मिलती सदा, अपनाते जो ध्यान।
योग करो, ताक़त गहो, पाओ नित सम्मान।।
योग कह रहा नित्य यह, लेना शाकाहार।
तभी मिलेगा हर कदम, जीवन में उजियार।।
भारत चिंतन में प्रखर, देता उर-आलोक।
योग-ध्यान से बंधुवर, पास न आता शोक।।
योग दिवस मंगल रचे, अखिल विश्व में मान।
योगासन हर मुद्रा, पाती है यशगान।।
योग साधना दिव्य है, रामदेव जी संत।
जिन ने भारत से किया, सकल रुग्णता अंत।।
योग नया विश्वास है, चोखी है इक आस।
जो जीवन-आनंद दे, रचे नया मधुमास।।
योग-ध्यान से नेह कर, गाओ जीवन गीत।
तन-मन को बलवान कर, पाओ हरदम जीत।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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