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पिता

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)

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परिवार का आधार स्तंभ हैं पिता,
परिवार का मुखिया हैं पिता,
पिता हैं परिवार की बरगद-सी छांव,
पिता ढाल हैं, पिता आदर्श हैं।

पिता हैं दिये की बाती,
जब तक हैं पिता तब तक,
जगमगाता हैं परिवार,
घर की रौनक हैं पिता,

पिता हो चाहे बीमार,
परिवार-जनों की खुशी-खातिर,
अपने दुख-दर्द छुपाता हैं।
कभी-कभी गम के घूंट,

अकेले ही पीता हैं।
अंतस में हो चाहे तिमिर,
अधरों पर लिए मुस्कान,
सुगंधित पुष्प-सी महक,

महकाता हैं पिता,
पिता परिवार का मान हैं।
स्वाभिमान हैं।
परिवार का ताज-सरताज हैं।

पिता हैं परिवार का दिव्य-प्रकाश,
अपने कर्तव्य पूर्ण कर,
पिता दिये की बाती सम
प्रज्ज्वलित हो, प्रकाश फैलाता।

परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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