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यशोधरा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बुद्ध को अमरत्व मिला,
श्री विष्णु के अवतार बने,
यशोधरा की बीथी बिसर गई
विरह, वेदना, एकाकीपन,
पीड़ा ही अर्जित कर पाईं!!
प्रश्नो का अंबार लगा,
क्यों तुम हमको छोड़ गए
लिया था सात वचनों का बंधन
इतनी आसानी से तोड़ गए!
स्वयं पर विश्वास नहीं
क्या बाधा मुझको समझ गए!!
जब जूझ रहे थे अंतर्मन से
कुछ तो बतलाया होता,
इन प्राचीरों में, यूँ ही
अकेला छोड़ गए!!
नही विस्तृत कर पाई
उन स्मृतियों को
जो साथ तुम्हारे बीती थी
उन सभी सुनहरे सपनों को
अग्नि में सुलगते छोड़ गए!!
देह का बोझ ढोना हुआ दुष्कर,
सारी आशाएं कुम्हलाईं !
मृत्यु भी ना वर पाऊँ
राहुल को पीछे छोड़ गए!!
किस से बांटू वेदनाओं को
कैसे उसको मैं बहलाऊं
विरान, सिसकती इन दीवारों पर
कोई संदेश छोड़ के नहीं गए!!
मुक्ति पथ पर निकले थे,
तुम समाधिस्थ हुए,
जाते जाते उसी राह पर
कर जाते तुम मुक्त मुझे!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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