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सदा इंसानियत जिंदा ऱखना

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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लाख सोचे कोई बुरा हमारा पर,
भूलकर भी न अपशब्द बकना।
इंसान की हो औलाद अगर, तुम
तो सदा इंसानियत जिंदा रखना।।

माना कि-दुनिया है मतलबी यह,
फ़िर भी परमार्थ पथ कुछ चलना।
खिलना बनक़े कुसुम करुणामयी,
सदा सुवास-सा पल-पल पलना।।

ऱखना निष्छल सदा अंतर्मन चंचल,
जीवन यह धूप छांव-सा है।
नही कोई अपना-पराया यहां पर,
सब कुछ लगता ख़्वाब-सा है।।

इस धरा का, इस धरा पर ही,
सब कुछ ही धरा रह जाना है।
आज यहां, कल होंगे कहां हम,
नही पता कोई ठौर-ठिकाना है।।

कहलाता श्रेष्ठ मानव-धर्म यह,
करना सबका समादर सम्मान।
बना मनुज भूतल पर ईश्वर वह,
रोम-रोम रमे जिसके इंसान।।

आता मनुज ख़ाली हाथ धरा पर,
जायेगा भी लेकर खाली हाथ।
जीते-जी के हैं यह कुटुंब-कबीले,
श्मशान में जलता न कोई साथ।।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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