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आठ से साठ

ललित शर्मा
खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
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वक्त कब कैसे बीतता
जीवनभर मन सोचता
आठ वर्ष का बचपना
खेलकूद से जी भरता
कब जगते, खाते, सोते
घरेलू नुस्खे उपजते
खेलते कूदते बचपना

बाल्यकाल में झगड़ते
कब आया यौवनावस्था
नही पता कैसे मस्त रहते
बड़े बुजुर्ग गलतियों पर
अक्सर वे कान पकड़ते
आंख के इशारे से डरते

चुप्प रहते मगर हंसते
छोटीबड़ी बातें सुनते
हंसते मुस्कुराते रहते
कुर्सी में आगे बैठते
बड़े पीछे कर देते

पहले बुजुर्गवर्ग बैठते
बचपना नही समझते
हम अलमस्त हंसते
युवावस्था, इन्हें समझते

दिनप्रतिदिन यूं ही बीतते
यौवनास्था से प्रौढ़ावस्था
जिम्मेवारी में रहते रहते
दुःखसुख स्वतः सुलझते
सवारी थे ध्यान नही देते

जन्मदिन आते बुलाते
जाते तालियां बजाते
हरदम अपने जीवन के
खुशियों के दिन भूलते

बस जीवन के दिन कटे
जो हमे छोटे बच्चे कहते
उम्र समय कैसे बीते
बतातेबताते आठ से साठ
हमसे ज्यादा वो खूब हंसते

गणित को समझते सोचते
उम्र बीत रही रे भैया कहते
इस अवधि के ७२० महीने
३१२० बीते वर्षो के बीते हफ्ते
२१९०० न गणितीय दिन बीते
अचानक पता चला जब किये
हिसाब में कागज कलन उठाये
आठ के बचपना दिन खत्म हुए
वरिष्ठ नागरिक अब कहने लगे

दुःख दर्द खुशीगम पीड़ा सहते
पता नहीं कैसे आठ से साठ
जिंदगी के सफर में पहुंच गए

परिचय :- ललित शर्मा
निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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