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नियति

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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जो कल सब कुछ
यही छूटना है,
उसे आज अपने हाथों
छोड़ देना एक कला है !
उसी में ब्रह्म है,
मोक्ष है और पूर्णता है !!
भीड़ में उलझा अशांत मन,
उस पीड़ा की अनुभूति
भी नहीं कर पाता,
जो मुक्ति के लिए बेचैन है,
पानी के बुलबुले सा बनता
बिगड़ता इंसानी जीवन,
समझ नहीं पाता !
जब स्वयं के
भीतर ही नहीं जाना
दूसरी उलझनों
में क्या पाओगे !
इस जीवन को
एक उपलब्धि जानो
कर्तव्य कर्म है,
प्रेम सृजन,
स्वयं के हृदय के
मौन को पहचानो !!
जिस दिन तुम मौन में
उतर एकाकी हो जाओगे,
उस दिन एक हाथ अपने
हाथ मे महसूस करोगे,
वो दूर नहीं तुमसे,
बस तुम पास
जा नहीं पाते उसके,
तुम भीड़ में
इस कदर बे हुए हो,
देख नहीं पाते उसको!
स्वयं में छिपे हुए
परब्रह्म को पहचानो ,
वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों,
संकल्पनाओं से परे है!
अंत तो नियति है
पर शाश्वत होना है
चंद शब्दों मे !!
शब्द कभी मरा नहीं करते!!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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