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बृज का उलाहना कान्हा को

डॉ. किरन अवस्थी
मिनियापोलिसम (अमेरिका)

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कान्हा, तुम गये तो लौट न आए
राह तकें गोकुल, वृंदावन
नंदलाल को तरसे हर मन
नंदगांव, बरसाना व्याकुल
गउएं मुरली सुनने को आतुर
घर से न निकलें, टेर लगाएं।

बोलीं राधा –
आए कन्हैया धरती पर
अपना कर्तव्य निभाने को
उनका सारा जग अपना
तुम पहचान न पाए कान्हा को।

जिस धरती ने उन्हें पुकारा
दौड़ वहीं कान्हा आए
पूतना, तृणावर्त, बकासुर वध कर
बृज के रक्षक कहलाए।

बृज की मइया, बृज की गइयां
बृज के गोप, बृज की गोपियां
बृज में कान्हा रास रचाएं
बृज ने गीत भक्ति के गाए
बहा स्नेह की निर्मल धारा
तम का बंधन काटा सारा।

बढ़ा कंस का अत्याचार
मथुरा की धरती करे पुकार
प्रलोभन प्रवृत्ति, राक्षसी बल
अनाचार का प्रचंड प्रसार
आर्तनाद सुन पहुंचे कान्हा
मथुरा की धरा को पहचाना।

हुई राक्षसों की भारी‌ हार
मिटा कंस, किया उद्धार
देवकी वसुदेव को मुक्त किया
हर पापी को ध्वस्त किया
हुई कान्हा की जय-जयकार
सबको पावन प्यार दिया ।

जरासंध आतंकी भारी
व्यभिचारों से प्रजा दुखियारी
उससे रक्षा करने जन-जन की
छोड़ चले मथुरा की धरती
सबका करते थे सम्मान
सबको लेगये द्वारिका धाम
स्वर्ग सी नगरी एक बसाई
जन मन में हरियाली छाई।

पांडव कौरव का द्वेष विशेष
कान्हा लाए शांति संदेश
शांतिदूत, न्याय का बाना
पर दुर्योधन ने एक न माना।

अर्जुन ने कान्हा को पुकारा
भक्तवत्सल ने रथ को संभाला
कुरुक्षेत्र को चले कन्हाई
अनुपम माया वहां रचाई
अर्जुन के सखा, बने सारथी
युद्ध क्षेत्र में गीता गाई।

हस्तिनापुर निष्पाप किया
उत्पातों से मुक्त किया
यह कान्हा का जीवन सार
वे परमपिता परमेश्वर हैं
भगवान भगत के वश में हैं
जिसने पुकारा संपूर्ण ह्रदय से
करते वे उसका उद्धार।
जय श्री कृष्ण।

(रास शब्द के दो अर्थ है -प्रिय लगना, दूसरा संस्कृत शब्द रहस्य का अपभ्रंश है रास, भगवान ने वृंदावन में हर गोपी संग रहस्य लीला की थी कि वे हर गोपी को अपने साथ ही दिखाई देते थे ताकि वे सांसारिकता की जकड़ से मुक्त हो कर समझें कि हमारे सभी कर्मों को ईश्वर देख रहे हैं। इस प्रकार पाप कर्म से मुक्ति का मार्ग है भगवान की रासलीला अर्थात् रहस्य लीला।)

परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी
सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर
निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश)
वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका)
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान
सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती।
पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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