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हमसफर एक्सप्रेस

मुस्कान कुमारी
गोपालगंज (बिहार)
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कुछ कहानियां ऐसी होती है जिनको शब्दो में बयां नहीं किया जा सकता, एक कहानी ऐसी भी…

तोड़कर खुद को वो किसी और को जोड़ रहा था हां, एक लड़का जो किसी से बहुत प्यार कर रहा था हमेशा खुद को वो उसके ही सपने में डुबोए रहता था एक साल हो गए और सब अच्छा चल रहा था पर अचानक से एक मनहूस दिन आया लड़की के घर में धीरे-धीरे सबको पता चल रहा था उस पर पाबंदियों के हजारों जंजीरे लगने लगी उसका अब घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा था इधर लड़का बेचैन उसे कहां धैर्य हो रहा था। वो उसे देखने को कब से बेचैन बैठा था आदत थी उसे हर दिन उसे देखने की अब उससे इंतजार नहीं हो रहा था, कहीं से उसकी कोई खबर आए काश उसे कोई बाहर ले आए एक बार देख ले उसे तो उसे चैन आए पर कहां कोई उसकी दिल की बातों को सुन रहा था
दो दिल रो रहे थे, थे वो परेशान बात इतनी सी थी अलग थी उनकी कास्ट फिर उसमे तो धर्म के ठेकेदार का बोलना तो जरूरी था प्रेम तो था उनके लिए बाकी समाज की नजर में पाप था। अब दोनों के सामने उनका भविष्य साफ था या तो लड़की किसी और लड़के से शादी कर लेती
या भाग जाते दोनों साथ-साथ और एक दिन मन बना ही लिया और निकल गए जब स्टेशन पर एक दूसरे को देखा तो सांसे थम गई पकड़ा एक दूसरे के हाथ निकलने मंजिल की ओर गाड़ी नंबर ०५६१ हमसफर एक्सप्रेस दिल्ली की ओर पर जब मुड़े पीछे तो वो हैरान हो गए क्योंकि पीछे भाई और कुछ लोग थे खड़े लड़की जाना नहीं चाहती थी फिर भी जबरदस्ती ले जाया गया। और लड़के को इतना मारा कि वो मर ही गया जब पता चला ये बात लड़की को तो वो ऐसे ही मर गई अगले दिन पता चला वो भी फांसी पर लटक गई पता नही ऐसी कहानियों में भाई, बाप वाले किरदार कहां से आते है समझ नहीं आता क्या सच में वो इंसान ही होते है एक अच्छे लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं करते क्योंकि उसकी बिरादरी अलग है अपने बिरादरी वाला मार भी दे तो भी वो सही है।

परिचय :- मुस्कान कुमारी
निवासी : गोपालगंज (बिहार)
शिक्षा : इंटर सेकेंडरी, सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल वाराणसी

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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