प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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भगवान परशुराम का अवतार सत्य से आप्लावित था।
अनीति, अधर्म को ख़त्म करने के संकल्प से प्रेरित था।।
त्याग, तपस्या, संघर्ष उनके जीवन की सुखद कहानी है।
महकती-मुस्कराती हुई एक सुपावन ज़िन्दगानी है।।
हमें सिखाया कि धर्म से ही सदा मनुष्यता का श्रृंगार होता है।
जो अनीति के पथ चलता वह आजीवन सिसकता-रोता है।।
हमें बताया कि शास्त्रों ने ही तो हमें नित जीना सिखाया है।
शिवत्व धारण करने हमको शास्त्रों ने गरल पीना सिखाया है।।
हमें बताया कि शस्त्र उठाकर अन्याय का प्रतिकार करना है।
बनकर परशुराम जैसा ही आततायियों का संहार करना है।।
सनातनी ध्वज लेकर हमको तो सकल विश्व को जगाना है।
जन-जन के हृदय मंगलभाव फिर आज फिर से लाना है।।
हमें, वेद-पुराणों को जगाना, और धनुष-बाण सजाना है।
हमें, कृष्ण बनना और अर्जुन भी ख़ुद को ही बनाना है।।
जयंती कहे कि वक़्त अब सोने का नहीं, स्वयं को जगाना है।
त्याग, तपस्या के साथ, शूरवीरता को भी अब निभाना है।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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