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काया

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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आज मैंने अपनी
काया से पूछा
तुम्हें और क्या चाहिए,
इतनी लंबी यात्रा हुई
कोई तो वज़ह होगी
कुछ तो चाहत होगी
चलते रहने की
औषधियाँ तो बहुत हुई
अब कौन सा
परिपूरक चाहिए ?
आकार पर बहस छिड़ी
जो रंग रूप पर आकर ठहरी
समय ने कई निशान
दिए हैं भेंट स्वरूप
इन खिंचाव भरे
निशान पर चिंतन
करना चाहती है
कोमलता नहीं
दृढ़ता चाहती है,
पडती हुई सिलवटों
को रोकना चाहती है
उन सभी जानी अनजानी
औषधियों से दूर
होना चाहती है
जो पुनः जीवित होने
का ढोंग रचती हैं,
“स्वयं” के बंधन
तोड़ना चाहती है
नश्वर जगत को
समझना चाहती है
उसके सारे प्रश्न
धीरे-धीरे तैयार हो रहे थे
तभी कानों में धीमी सी
फुसफुसाहट सुनाई दी
क्या अब भी तुम
मुझसे प्यार करोगी!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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