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वो एक लमहा

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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वो एक लमहा
अब तक नहीं
पकड़ पाया मैं
जब बदल गयीं थी
दिशाएँ हमारी

गुज़रते वक्त से
बार-बार गुज़रकर
मैं अब भी ढूँढता हूँ वो पल
जो ले गया तुम्हें दूर मुझसे

न जाने वो क्या था
जो अदृश्य सा तैरता
रहा हमारे बीच
और जिसके रहते
तय न हो सके
फासले कभी !

वक्त का एक
बड़ा सा टुकडा
बेरहमी से भाग
रहा है हमारे बीच
कहते हैं कि
वक्त के साथ
सब बदल जाता है
मै देखना
चाहता हूँ तुम्हे भी
तुम्हारे बदले हुए रूप में

तो क्या अब
तुम नहीं पहनती
वो आसमानी
नीली साड़ी
जिसे देखते ही
मैं बन जाता था
उफनता
पागल सा सागर !

शायद अब तुम्हारी
डायरी के पन्ने
किसी और
रास्ते से गुजरकर
मुकम्मल होते होंगे
और शायद तुमने
अब मीठे की जगह
नमकीन खाना
भी सीख लिया होगा

शायद तुम
छोड़ चुके होंगे
मेरे न होते हुए भी
मुझे साँसों में
भरकर जीना

पर एक सच
मेरे हिस्से का भी है
वक्त के कैनवास पर
मेरी तूलिका से बिखरे रंग
बदरंग हो जायें उसके पहले
तुम्हारे साथ जिये हुए
समय के सबसे
खूबसूरत हिस्से को
मैं बंद कर देना
चाहता हूँ तिजोरी में

वह कुछ और नहीं
साँसें हैं मेरी
जिनकी जरूरत
मुझे बार-बार पड़ेगी
जीने के लिए ..!

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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