संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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हाँ-हाँ अब मैं बासठ की हो गई।
अब पहले जैसी कार्य क्षमता कहॉं गई पता नहीं।
ना तो सिर में अब पहले जैसे बाल हैं।
ना ही अब पहले जैसे फूले हुए गाल हैं।
अब तो घने बालों की लंबी चोटी भी नहीं।
अब तो पिचके हुए गाल हैं।
तरुण अवस्था में जो स्निग्ध,
चिकनी त्वचायुक्त चेहरा था।
वह भी तो लुप्त हो गया।
अब तो मुख पर गहरी आड़ी-तिरछी,
रेखाएं दिखाई पड़ती हैं।
जैसे कोई उबड़-खाबड़, टूटी-फूटी सड़क।
चेहरे पर झुर्रियां दिखने लगी।
अब पहले जैसी तीव्र याददाश्त भी नहीं रही।
शरीर की त्वचा भी ढीली हो लटकने लगी,
मानो किसी ने बहुत ढीले वस्त्र पहन रखें हो।
त्वचा तो छोड़ो अब तो शरीर की अस्थियां भी,
गठिया रोग से ग्रसित हो गया,
कभी हाथ, कभी पॉंव, कभी घुटना,
कभी हाथों की उंगलियां,
तो कभी पैरों की उंगलियों,
में तीव्र दर्द रहने लगा।
मांसपेशियां और अस्थियां,
उम्र के हिसाब से कमजोर होने लगी।
अब शरीर के किसी भी,
अंग में असहनीय दर्द होने लगता हैं।
दांतों में भी खाना फसने लगा।
मसूड़े ढीले पड़ने लगे।
दांत के डॉक्टर को दिखाना पड़ रहा है।
रूट कैनाल करवाना पड़ रहा है दर्द सहना पड़ रहा।
हाँ-हाँ अब मैं बासठ की हो गई।
कई बार तो बिस्तर से उठा-बैठा भी नहीं जाता।
सचमुच लगने लगा है कि अब मैं बासठ की हो गई।
इतना सब होने के पश्चात भी,
मैंने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया हैं।
जब-जब मैं पीड़ा में होती हूं।
मैं अपने आपसे कहती हूं।
चल उठ संगीता तुझसे प्रभु कह रहे।
उसे सुन प्रभु कह रहे।
तू कभी थकना मत, रूकना मत,
भयभीत मत होना, तुझे निरंतर चलते जाना हैं।
अपना आत्मविश्वास कभी मत खोना।
तेरा हाथ मैंने पकड़ रखा हैं।
तू तनिक घबराना मत।
मैं सदा तेरे साथ हूॅं।
बस तू मेरी याद में सदा रहना।
मैं तो तेरे साथ तेरे जन्म से ही हूं।
तू मुझे महसूस कर।
जीवन-यात्रा में आगे बढ़।
तू अपनी सेहत का ध्यान रख।
प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ।
सर्वप्रथम ईश्वर ध्यान में जुड़।
एक घंटा अपने प्रभु को समय दो।
तत्पश्चात योग, प्राणायाम, व्यायाम कर।
कच्ची वस्तुओं सफेद कद्दू, गाजर,
टमाटर, ककड़ी, ऑंवले का जूस,
तुलसी, नीम के पत्ते चबाकर खा।
हृदय के सभी विकारों का त्याग कर सद्गुण अपना।
परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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