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लागी तुझसे लगन

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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उड़ गई निदिया रातों की, जल-जल जाए वदन,
जबसे देखा चांद-सा चेहरा, लागी तुझसे लगन।

जब भी देखूं,जहाँ भी देखूं, आये तुम ही नज़र,
अपलक राह तके नयन, होकर ख़ुद से बेख़बर।

तुम्हारी यादों में ही गुज़रे, अब तो मेरे दिन-रैन,
जो आ जाओ मेरे सामने दिले-बेक़रार पाए चैन।

यूं तो लाखों है दुनिया में, पर तुमसा कोई कहां,
तुम्हें ही अपना “मत्स्य” माना, तुम्ही हो मेरे जहां।

है बिन तेरे अब नामुमकिन, जग में तन्हा जीना,
तेरी ही चाहत में रहे गुज़र, मेरे दिन साल महीना।

आकर देख ज़रा अब मेरा, दर्दे-दिल ओ बेदर्दी,
कितने ही सावन बरस गए, आया न तू हद करदी।

जोड़ा तुमसे ही नाता मैंने, ओ मेरे जाने -जिगर,
आ अब गले लगा ले मुझे, बनकर मेरा हमसफ़र।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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