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उम्मीद का चिराग

प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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तन्हाइयो का सफर हैं तेरा और मेरा
तन्हा कैसे कट पाये सफर अब मेरा
आप तड़पते बैठे हो अकेले ही वहाँ
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

उम्मीद का चिराग ही जला पा रहे हैं
साथ होगा दिल को समझा पा रहे हैं
जाने किस विधि साथ होगा अब तेरा
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

कैसे भी हालात अब जीना ही पड़ेगा
गम के आंसु खुद को पीना ही पड़ेगा
कभी तो सफऱ में साथ मिलेगा तेरा
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

क्या कभी हम साथ-साथ हो पायेंगे
हर हाल में पिया तेरे साथ जी पायेंगे
कभी मन निराश ना हो मेरा और तेरा
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

उम्मीदों के सहारे जीवन काट लेंगे
गम व ख़ुशी आपस में ही बाँट लेंगे
तू बने राधा मेरी मै घनश्याम हूँ तेरा
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

जी रहे केवल साथ की ही आश में
बचा जीवन का सफर हो विश्वास में
रब घटाये अब दुरीयाँ मेरा और तेरा
जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा

परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
जन्म : २५/११/१९७८
निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़)
संप्रति : शिक्षक
शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा
रूचि : काव्य लेखन, आलेख लेखन, विभिन्न कार्यक्रम में मंच संचालन, अध्ययन अध्यापन
कार्य स्थल : शासकीय माध्यमिक शाला सांकरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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