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यज्ञ की समिधा

संजय डुंगरपुरिया
अहमदाबाद (गुजरात)
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हर व्यक्ति राजनीति की शतरंज में खुद को प्यादा समझे, या फिर चुनाव यज्ञ में समिधा।
इससे ज्यादा कुछ मोल नही है भारत मे आम नागरिक का। कभी फुसला कर, कभी धमका कर, कभी डरा कर चुनाव की वैतरणी पार करनी है सब नेताओ को। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस। ये सब आधुनिक ययाति हैं जो जनता रूपी पुरु से उनका यौवन जब चाहे मांग लेंगे या छीन ही लेंगे। किसी को सत्ता का मद चढ़ गया और किसी से सत्ता छीन जाने पे भी उतर ही नही रहा। किसी का उत्तराधिकारी है ही नही और कोई अपने अयोग्य उत्तराधिकारी को सत्तासीन करने के स्वप्न देख रहा। इन सब की सोच में आम आदमी का दर्द कितना महत्व रखता है विज्ञानकर्मियों के लिए खोज का विषय है। विश्व परिप्रेक्ष्य में देखे तो, कोई मौत बेच रहा, कोई दवा बेचने में लगा है, कोई आतंक बेच रहा, कोई हथियार बेच रहा, कोई धर्म बेच रहा। इंसानियत कहाँ है इस समय ये चिंता का विषय है। राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व की होड़ तीसरे विश्वयुद्ध के द्वार पे ले आई दुनिया को। यमराज अपना दंड लेकर आंखों से आग बरसाते भैंसे पे सवार हो कर चल पड़े लेकिन क्या किसी राज्याध्यक्ष की आंखों में डर दिखता है या इन्होंने यमराज को भी खरीद लिया है….

परिचय :- संजय डुंगरपुरिया
निवासी : मनीनगर, अहमदाबाद (गुजरात)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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