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गुमसुम बचपन

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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हाय! हुआ गुमसुम बचपन यह कैसी सीख है।
लदे हुए बस्ते भारी-भारी दबी हुई हर चीख़ है।।

ग़ायब हुई कश्ती कागज़ की बरसाती पानी से।
सिमट गया दौर किस्सों का बरगद-सी नानी से।।

कोमल करों में ढेरों क़िताबें, कैसी यह पढ़ाई है।
कूड़े में भाग्य ढूंढ़े बालमन, कैसी यह बड़ाई है।।

ख़त्म बात विश्वास की, मन में कैसा मेल आया।
जलता बालपन दीप-सा छटता ना तृषि साया।।

शिक्षा व्यवसाय बनी संस्कृति से नही सरोकार।
रिश्ते रद्दी कागजी लगे, नातों से मुक्त व्यवहार।।

समय रहे करना होगा, बचपन का नव इंतज़ाम।
वरना रहो भुगतने तैयार भीवत्स लाखों अंजाम।।

आओ बचाएं बचपन प्यारा, मोबाइल के जाल से
करें विचार मिलजुल अभी, पीड़ा किस सवाल से।।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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