प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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(१)
महाशक्ति है दिव्य, रामजी जो कहलाते।
हर पल ही जो भव्य, भक्त जिनको हैं भाते।।
प्रभुवर रखते ताप, सभी के दुख हैं हरते।
महिमा का विस्तार, पुष्प गरिमा के झरते।।
(२)
महाशक्ति है दिव्य, रामजी की है माया।
करना प्रभु उद्धार, बोझ यह नश्वर काया।।
तुम तो दीनानाथ, तुम्हीं हो सबके स्वामी।
मैं तो नित्य अबोध, दुर्गुणी, अति खल, कामी।।
(३)
महाशक्ति है दिव्य, हृदय में सबके रहते।
बनकर के उपहार, भक्ति में नित ही बहते।।
यह जीवन अभिशाप, दुखों ने डाला डेरा।
हे मेरे प्रभु राम !, मुझे पापों ने घेरा।।
(४)
महाशक्ति है दिव्य, उसी ने जगत बनाया।
कहीं रची है धूप, कहीं पर शीतल छाया।।
बाँटा है उजियार, रचा है मानवता को।
लेकर के अवतार, मारते दानवता को।।
(५)
महाशक्ति है दिव्य, जिन्हें हम रघुवर कहते।
बनकर जो शुभभाव, हमारे सँग नित रहते।।
वंदन करता विश्व, अवध में जो अवतारे।
संतों का उद्धार, अनगिनत पापी मारे।।
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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