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कोमल है कमनीय भी

मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान।
यशवर्धक मन मोहिनी, हिंदी सरल सुजान।।

भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान।
देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।।

अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान।
सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।।

सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान।
पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।।

आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान।
अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।।

उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान।
सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।।

पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान।
भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।।

पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान।
स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।।

दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान।
इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिमान।।

प्रोत्साहित इसको करें, आए नया विहान।
बने राष्ट्र भाषा यही, करो सजग संज्ञान।।

परिचय :- मीना भट्ट “सिद्धार्थ”
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन।
प्रकाशित पुस्तक : पंचतंत्र में नारी, काव्यमेध, आहुति, सवैया संग्रह, पंख पसारे पंछी
सम्मान : विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा, विद्या सागर और साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा, विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि, गुंजन कला सदन द्वारा, महिला रत्न अलंकरण, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “उत्कृष्ट न्यायसेवा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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