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चलो मिटा दें घृणित दायरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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चलो मिटा दें घृणित दायरे,
सभी एक हो जाएँ।
छुआछूत का घृणित दायरा,
मिलकर सभी मिटाएँ।

ऊँच-नीच का भेद मिटा दें,
समरसता आएगी।
होगी तब समाज में समता,
सबके मन भाएगी।

पनप रहा है एक दायरा,
ऊँच-नीच का भारी।
निर्धन और धनी का अंतर,
बहुत बड़ी बीमारी।

कुछ दायरे सदा दुखदाई,
हमें कलंकित करते।
भाईचारा सदा मिटाते,
जीवन में दुख भरते।

करें विनष्ट दायरे मिलकर,
बंधन दूर हटा दें।
पड़े जरूरत घर, समाज को,
अपना शीश कटा दें।

नहीं दायरे कामयाब हों,
जो संघर्ष बढ़ाते।
मीलों दूर रहे हम उनसे,
जो पीड़ा पहुँचाते।

जीवन के दायरे मिटा लें,
रहें सदा हिल मिलकर।
मन की बगिया, महके ऐसे,
सुमन सुगंधित खिलकर।

भाईचारा रहे पल्लवित,
प्रमुदित दुनिया सारी।
सुरभित सुषमा रहे हिंद की,
ज्यों केसर की क्यारी।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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