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गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते

खुमान सिंह भाट
रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़)
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एक दिन के बात आय समारू घर म कोनो नई राहय घर के जम्मो लईका सियान हर अपन ममा घर घुमे बर चल देते। फेर क घर ह पुरा सुन्ना होगे समारु जईसे तईसे दिन भर बिताए के बाद म संझा के बेरा होगे, तब समारू हर नंग्गत के अघाए भुखाय घलो रथे कबार कि बहिनिया कुन बोरे बासी भर ल खाय रथे। समारु लकर धकर हाडी कुरिया म जईसे मुच्चा ल उठआईस त पाते कि कुरवी म एको कन अन्न के दाना नई राहय। ये सब ल देख समारु भुख पियास म तरमिर-तरमिर करे लागिस फेर क करय गघरा म पानी भराय राहय समारू गघरा ले लोटा भर पानी निकाल सांस भर के पीये लागिस, अईसे-तईसे करके समारू कुछ समय बिता डरिस। फेर वोहर रोज अन्न के दाना खाय बिना वोला नींद घलो नई आवय समारू हाडी कुरिया म जेवन बनाय बर भीड़ जथे जइसे आगी सपचाय बर छेना लकड़ी ल देखते त सबे हर सिरा गे रईथे। ये सब ल देखत समारू के मति फेर छरिया जथे उही बेर म समारू के बाइ हर मोटरा ल मढा के हाउक पारथे आवाज ल सुन समारू महाटी कोती के सिटकिरि ल खोलते अपन घरवाली ल देख समारु के जीव जुड़ा जथे थोरकुन बइठ ले के बाद अपन दुःख पीरा ल बाई ल बता डारथे समारू के गोठ ल सुन ऐती ओकर बाई के हांसी के ठिकाना नइ राहय थोर कुन सुरताय के बाद वोकर बाई हर कहे लागथे ताय अतका दिन बीत गे मय हर जेवन ल गैस चुल्हा म बनात हाबो तेला …।
समारू कहिथे मय क जानव गौटनिन कि तैय कामा बनत रईथस तेला काबर कि तैय तो जानत हावस की जईसे बिहिनिया होथे उही बेरा ले काम में निकले-निकले संझा पहर म घर लहुटथव फेर समारू के अंतस ले निकल जथे, कि देख वो गौटनिन माटी के कुरवी मढ़ना के जेवन हर बने सुहाते। फेर ते हर आज कल आधुनिकता के चकाचौंध म तहू हर मोहा गे हाबे जेन ल देखत तेन हर उज्वला के चक्कर म चुल्हा चौंकी ल भुला गे हवस ये सब गोठ ल सुन गौटनिन के आंखी फरिहा जथे उही दिन ले गौटनिन हर प्रण करथे की आज ले जेवन हमर सियान मन रीति रिवाज चले आवत परंपरा ले बनाबोन माटी के चुल्हा चौंकी ल सुघ्घर सिरजा के जेवन बनाके सबे बर संदेशा बगराबोन गजब सुहाते गज़ब मिठाथे कुरवी मढ़ना के जेवन पानी ..।

परिचय :- खुमान सिंह भाट
पिता : श्री पुनित राम भाट
निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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