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जल जीवन का आधार

गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी”
बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश)
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करें सुरक्षित बूंद-बूंद जल,
है जीवन का एक आधार।।
धधक उठेगी पावक चहुंदिश,
धरणी जाएगी हो वीरान।
नही करेंगे खग-मृग विचरण
नही होंगे सौम्य-सुरभित मैदान।
नही होंगे जन-जंगल-जीवन,
क्षिति-क्षितिज व घर-द्वार।
करें सुरक्षित बूंद-बून्द जल,
है जीवन का एक आधार।।

थम जाएंगी लहरें सिंधु की,
जायेंगे तट नदियों के सूख।
डावर-खाई ज्वाला उगलेंगे
निर्झरी कंठ जाएंगे हो मूक।
छम-छम पावसी-पायल की,
मिट जाएगी सरस् झंकार।
करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल,
है जीवन का एक आधार।।

नही खिलेंगे गुल गुलशन में
मधुवन नीरस हो जायेगा।
कहो! कृष्ण किस कदम, बैठ
मुरली सुमधुर फिर बजायेगा।
मिट जाएगी सभ्यता-संस्कृति,
बच न पायेंगे सु-संस्कार।
करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल,
है जीवन का एक आधार।।

स्वर्ण-रजत से हिंम बिन्दु
नई प्रातः कहां से लाएगी ।
धनिया सरसों, अलसी गेहूं
धान मका कहां लहलायेगी।
पावस-शरद ग्रीष्म ऋतुओं का,
देना छोड़ करना इंतज़ार।
करें सुरक्षित बून्द-बून्द,
जल है जीवन का एक आधार।।

समय नही अब शेष “गोविमी”
मिल-जुल करलें कोई उपाय।
सोम-सम बहुमूल्य वारि, अब
बहने से आज, अभी बचाएं।
बिन पानी उबरे नही जग में,
मोती-मानुष, चुन-चीत्कार।
करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल,
है जीवन का एक आधार।।

परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा “गोविमी
निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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