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मैं एक सिपाही हूं

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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मैं एक सिपाही हूं
सिपाही जो जीता है देश के लिए,
सिपाही जो मरता है देश के लिए,
सिपाही फिर भी गुमनाम हैं।

मैं एक सिपाही हूं
सिपाही जो एक शिक्षा हैं,
सिपाही जो एक प्रेरणा हैं,
देश पर न्यौछावर
होने के लिए,
फिर भी उसे स्थान
नहीं मिलता दिलों में,
इतिहास के पन्नों में
भी सिपाही का नाम नहीं,
रंगीन हो जीवन में
ऐसी कोई शाम नहीं।

मैं एक सिपाही हूं
मेरा नाम मिलेगा सरहद पर
दूर कहीं रेगिस्तानों में,
पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में,
अनजानी सी बारुद गोली में,
और मिलेगा नाम देश के
सुनहरे भविष्य की नींव में,
फिर भी सिपाही गुमनाम हैं …

मैं एक सिपाही हूं
जिसकी कल तक
जय-जयकार थी,
तब देश को मेरी जरूरत थी,
आज मुझे भुला दिया है,
जब मुझे देश की जरूरत है,
कल तक कंधों पर मेरे देश की
सुरक्षा का भार था,
देशवासियों के विश्वास
को बनाए रखूं
इसीलिए सरहद पर खड़ा था,
चौकस और मुस्तैदी से,
बरसात में तपती धूप में और
गिरती बर्फ में भी,
आज दब रहा हूं,
परिवार की जिम्मेदारी में,
इस भार को मैं उठा नहीं पा रहा,
क्योंकि अपने हाथ और एक पैर
चढ़ा चुका हूं सरहद पर,
खुद आश्रित हूं दूसरों पर,
नजरे चुरा रहे हैं सब,
जो दे रहे थे आश्वासन,
और कर रहे थे वादे कई,
जान गया हूं,
वह आश्वासन के तवे पर,
सत्ता की खातिर वोटो
की रोटी सेक रहे थे
फिर भी आंखों में खोजती हैं उन्हें,
राह तकती है जब थक जाती हैं,
आंसू बहाती है, कोई देख ना ले,
मैं पोछ लेता हूं वह आंसू,
क्यों ? क्योंकि मैं एक सिपाही हूं …

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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