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ख़ामोशियां

आनन्द कुमार “आनन्दम्”
कुशहर, शिवहर, (बिहार)
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ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं
धीरे-से, हौले-से, चुपके-से
ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं।

मन की बाट जोहती हैं
बेसुध-बेज़ान-बेबसी की साये में
ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं।

बेमन-बेमेल-बेवजह रिश्तों को बुनती हैं
टूटी हुईं धागों से मन को सिलती हैं
ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं।

बिन कहे सब कुछ समझती हैं
बेशुमार दर्द के आलम में जीती हैं
ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं।

परिचय :- आनन्द कुमार “आनन्दम्”
निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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