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कुआँ हुआ करता था

शुभांगी चौहान
लातूर (महाराष्ट्र)

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कुआँ हुआ करता था
बाड़े में
दादी भरा करतीं थी
रोज उसका मीठा पानी
कभी भोर में
सुबह में तो कभी दुपहरी
देता हर समय ठंडक
उस कुएँ का पानी
कभी राहगीर बटोही
की प्यास बुझाता
तो कभी प्यार से दो बूंद
पँछी को पिलाता
याद आता हैं बहुत
कुआँ वह मीठे पानी का
शाम होते ही आती
गांव की औरतें सभी
भरने के लिए
उसी कुएं का पानी
चहेरे के संग-संग चमक जाते
भरे-भरे पानी से भरे
घड़े तांबे और पीतल के
खुश हो होकर भरती वह
घड़ों में पानी
पानी जैसे हो
अमृत जीवनदान
काम बनता नही था
एक भी
बगैर कुएं के पानी के
भूसे की रोटी बनाती दादी
उसी कुएं के पानी से
कपड़े और बरतन धोती
और आँगन को गोबर से
चमकाती दादी
उसी कुएं के पानी से
स्वर्ग बन जाता
घर-द्वार आँगन गाँव
उसी पानी से
अब न जाने कहाँ
खो गये वह बाऊडी कुएं
नजर में नही आते हैं
आज हम उस कुएं
और बाऊडी को
केवल गीत में गाते हैं
बचाना हैं जल
बचाना हैं जीवन
वापिस लाना
होंगा हमें फिर से
वही मीठे पानी वाला कुंआ
जिससे दादी भरा करती थी
रोज पानी …

परिचय :- शुभांगी मगनसिंह चौहान
निवासी : लातूर (महाराष्ट्र)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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