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नारीत्व

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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आ गए तुम?
द्वार खुला है
अंदर आ जाओ।

पर तनिक ठहरो
ड्योढी पर पड़े
पायदान पर
अपना अहं
झाड़ आना।

मधुमालती लिपटी है
मुंडेर से
अपनी नाराज़गी
वहीँ उड़ेल आना।

तुलसी के क्यारे में
मन की चटकन
चढ़ा आना।

अपनी व्यस्ततायें बाहर
खूँटी पर ही टाँग आना
जूतों संग हर नकारात्मकता
उतार आना।

बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना।

वो गुलाब के गमले में
मुस्कान लगी है
तोड़ कर पहन आना।

लाओ अपनी उलझने
मुझे थमा दो
तुम्हारी थकान पर
मनुहारों का पँखा झल दूँ।

देखो शाम बिछाई है मैंने
सूरज क्षितिज पर बाँधा है
लाली छिड़की है नभ पर।

प्रेम और विश्वास की मद्धम
आंच पर चाय चढ़ाई है
घूँट घूँट पीना।
सुनो!
इतना मुश्किल भी
नहीं हैं जीना।

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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